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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org नंबर श्राचाय का नाम गुरु का नाम संघ, गण, गच्छादि लेख नं० २३ बलदेवाचार्य ३० पद्मनन्दि मुनि ३१ | पुष्प नान्द ३२ विशोक भट्टारक ३३ इन्द्रनन्दिश्राचार्य ३४ पुष्पसेनाचाय ३५ श्रीदेवाचार्य ३६ | मल्लिसेन भट्टारक ३७ कुमारनंदिभट्टारक ३८ अजित सेनभट्टारक "" मुनि ३६ मलधारिदेव ४० पद्मनन्दिदेव X X X X X X X X x x X X नयनन्दि विमुक्त X X X X X X X को लातूर संघ नविलुर संघ X X X x समय १६५ श्र०६२२ समाधिमरण । "" " १६६ "" " १६७ २०३ २०५ २१२ "" २१३ १४६ अनु०हवीं इनके एक शिष्य ने तीर्थ वन्दना की । शताब्दि "} " ג, "" 33 "" विशेष विवरण समाधिमरण । "" DEPONERY SAT PRE २२७ X ६७ ३८ अनु०८६६ लेख नं० ३८ में कहा गया है कि गङ्गनरेश मारसिंह ने इनके निकट समाधिमरण किया । व लेख नं० ६७ के अनुसार इनके शिष्य चामुण्डराय के पुत्र जिनदेवन ने जिन मंदिर बनवाया । ३०४ अनु०६७० नयनन्दि विमुक्त के एक शिष्य ने तीर्थ वंदना की । ४६८ श्र०१००० महामण्डलेश्वर त्रिभुवनमल कोङ्गाल्व ने ( १५२ )
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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