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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ऊपर वर्णित लेख नं० ४०,४१,४२,४३,४७,५०,५ लेखों में उल्लिखित श्राचार्यों का परिचय | नंबर प्राचाय का नाम गुरु का नाम १ बलदेव मुनि शान्तिसेन मुनि श्ररिष्टनेमि श्राचा 2 वृषभनंदि श्राचार्य मौनि गुरु कनकसेन X X × × X संघ, गण, गच्छादि लेख नं० समय शक सं०म x X १५,१०५, १०८, १११, ११३ और ४६३ को छोड़ शेष X १५२ (१५४) (२६७) १५ ० ५७२ समाधिमरण । " १७ १८६ "" विशेष विवरण CJE. TALY MATANOLONE A "" समाधिमरण | भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त मुनीन्द्र ने जिस धर्म की उन्नति की थी उसके क्षीण होने पर इन मुनिराज ने उसे पुनरुत्थापित किया । समाधिमरण । इनके अनेक शिष्य थे । समाधि के समय 'दिण्डिकराज' साक्षी थे । लेख नं० १५४ व २३७ यद्यपि क्रमशः मवीं वीं शताब्दि के अनुमान किये जाते हैं तथापि सम्भवतः उनमें भी इन्हीं प्राचार्य का उल्लेख है। लेख नं० २६७ में वे 'परसमयध्वं - सक' पद से विभूषित किये गये हैं व 'मले गोल' के कहे गये हैं । इनके किसी शिष्य ने समाधिमरण किया । ०६२२ एक शिष्या का समाधिमरण । ये ही सम्भवतः लेख नं० 8 के गुगसेन गुरु के व लेख नं० ३१ के वृषभनन्दि गुरु के गुरु थे । १४-६
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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