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संघ, गण, गच्छ और बलि भेद
१४७ स्थान - विशेष का नाम था । कहीं-कहीं इसे पनसोगबलि भी कहा है । (रि० ए० जै० नं० २२३, २३८, ४४६ आदि )
अनेक लेख (२८, ३१, २११, २१२, २१४, २१८ ) में नविलूर संघ का उल्लेख है । इसी संघ को कहीं-कहीं (२७, २०७, २१५) नमिलूर संघ कहा नबिलूर, नमिलूर है। इसी का दूसरा नाम 'मयूर स ंघ' व मयूर सघ
पाया जाता है ( २७, २८ )।
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लेख नं० २७ में पहले नमिलुर संघ का उल्लेख है और फिर उसे ही मयूर संघ कहा है। लेख नं० २८ में इसे 'मयूर ग्राम' संघ कहा है जिससे स्पष्ट है कि यह संघ बलि व शाखा के समान स्थान - विशेष की अपेक्षा से पृथक् निर्दिष्ट हुआ है कहीं पर स्पष्ट उल्लेख तो नहीं पाया गया पर जान पड़ता है कि यह भी देशीगण के ही अन्तर्गत है । इसी प्रकार जो लेख नं० १६४ में कितरस च नं० २०३, २०६ में कोलातूर संघ नं० ४६६ में दिण्डिगूर शाखा व नं० २२० में 'श्रीपूरान्वय' का उल्लेख है वे सब भी देशीगण की ही स्थानीय शाखाएँ विदित होती हैं ।
* कित्तर मैसूर जिले के होगाडेवन्कोटे तालुका में है । इसका प्राचीन नाम कीर्तिपुर था जो पुन्नाट राज्य की राजधानी था । कन्नड साहित्य में पुनाट राज्य का उल्लेख है । टालेमी ने भी 'पौन्नट' नाम से इसका उल्लेख किया है । इसी राज्य का पुन्नाद संघ प्रसिद्ध है । हरिवंश पुराण के कर्त्ता जिनसेन व कथाकोष के कर्त्ता हरिषेण पुन्नाट - संवीय ही थे । सम्भवतः कित्तूर संघ पुन्नाट संघ का ही दूसरा नाम है ।
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