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१४६ श्रवणबेल्गोल के स्मारक में कोई चारित्र-भेद नहीं है। कई लेखों ( १११, १२६ आदि) में बलात्कारगण का उल्लेख है। इन्हीं उल्लेखों से स्पष्ट है कि यह भी नन्दिगण व देशीगण से अभिन्न है।
लेख नं० १०५ में कहा गया है कि प्रत्येक संघ गण, गच्छ और बलि (शाखा) में विभाजित है। देशीगण का
. सबसे प्रसिद्ध गच्छ पुस्तकगच्छ है पुस्तकगच्छ और
भार जिसका उल्लेख अधिकांश लेखों में पाया वक्रगच्छ
__ जाता है। इसी गण का दूसरा गच्छ 'वक्रगच्छ' है जिसकी एक परम्परा लेख नं० ५५ ( लगभग शक १०८२ ) में पाई जाती है। लेख नं० १०५, १०८ व
१२६ में देशीगण की इंगलेश्वरबलि इंगुलेश्वरबलि
" (शाखा) का उल्लेख है। बलि या शाखा किसी आचार्य-विशेष व स्थान विशेष के नाम से निर्दिष्ट होती थी। देशीगण की एक दूसरी 'हनसोगे' नामक हनसोगे व पनसोगे बलि
- शाखा का उल्लेख लेख नं०७० में पाया
" जाता है। लेख घिसा हुआ होने से वहाँ यह स्पष्ट नहीं ज्ञात होता कि यह शाखा देशीगण की ही है। पर जिन आचार्या ( गुणचन्द्र व नयकीर्त्ति) को वहाँ हनसोगे शाखा का कहा है वे ही लेख नं० १२४ में मूल सघ देशीगण, पुस्तकगच्छ के कहे गये हैं। इसी से उक्त शाखा का देशीगणान्तर्गत होना सिद्ध होता है। हनसोगे शाखा का कई अन्य लेखों में भी उल्लेख आया है। हनसोगे एक
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