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श्रवणबेल्गोल के स्मारक हासिक विवेचन में आ चुका है। एक बात विशेष रूप से ज्ञातव्य है कि जैनाचार्यों ने हर प्रकार से अपना प्रभाव महाराजाओं और नरेशों पर जमाने का प्रयत्न किया था। इसी से वे जैन धर्म की अपरिमित उन्नति कर सके। जैनाचार्यों का राजकीय प्रभाव उठ जाने से जैन धर्म का ह्रास हो गया । ____ अन्य लेखों से जिन आचार्यो का जो परिचय हमें मिलता है वह भूमिका के अन्त में तालिकारूप में दिया जाता है।
संघ, गण, गच्छ और बलि भेद मूलसघ-ऊपर कहा जा चुका है कि लेखों में दिगम्बर सम्प्रदाय को मूल संघ कहा है। सम्भवतः यह नाम उक्त सम्प्रदाय को श्वेताम्बर सम्प्रदाय से पृथक निर्दिष्ट करने के लिये दिया गया है। लेखों में इस संघ के अनेक गण, गच्छ और शाखाओं का उल्लेख हैं। इनमें मुख्य नन्दिगण
है। लेख नं० ४२, ४३, ४७, ५८ नन्दिगण और देशीगण
____आदि में इस गण के आचार्यो की पर
___म्परायें पाई जाती है। सबसे अधिक लेखों में मूल संघ, देशीगण और पुस्तकगच्छ का उल्लेख है। यह देशीगण नन्दिगण से भिन्न नहीं है किन्तु उसी का एक प्रभेद है जैसा कि लेख नं० ४०, ( शक १०८५ ) से विदित होता है। इस लेख में कुन्दकुन्द से लगाकर अकलङ्क तक के
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