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प्राचार्यों का परिचय
१४३ वासवचन्द्र-इन्होंने चालुक्य नरेश के कटक में बालसरस्वती की उपाधि प्राप्त की थी (५५)।
यशःकीर्ति-इन्होंने सिंहल नरेश से सम्मान प्राप्त किया था ( ५५ )।
कल्याणकीर्ति-साकिनी आदि भूत-प्रेतों को भगाने में प्रवीण थे ( ५५ )।
श्रुतकीर्त्ति--'राघवपाण्डवोय' काव्य के कर्ता थे। यह काव्य अनुलोमप्रतिलोम नामक चित्रालङ्कार-युक्त था अर्थात् वह आदि से अन्त व अन्त से आदि की ओर एक सा पढ़ा जा सकता था। जैसा कि काव्य के नाम से ही विदित होता है वह द्वयर्थक भी था। श्रुतकीर्ति ने देवेन्द्र व अन्य विपक्षियों को वाद में परास्त किया था। सम्भव है कि उक्त देवेन्द्र उस नाम के वे ही श्वेताम्बराचार्य हों जिनके विषय में प्रभावक चरित में कहा गया है कि उन्होंने दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्र को. . परास्त किया था। (लेख नं० ४० के नीचे का फुटनोट देखिए । )
वादिराज-जयसिंह चालुक्य द्वारा सम्मानित हुए थे ( ५४ )।
चतुर्मखदेव-पाण्ड्य नरेश से स्वामी की उपाधि प्राप्त की थी।
इन आचार्यों के अतिरिक्त अन्य जिन प्रभावशाली प्राचार्यों का परिचय हमें लेखों से मिलता है उनका विवरण ऊपर ऐति
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