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१४२ श्रवणबेल्गोल के स्मारक न्यास, वैद्यशास्त्र और तत्त्वार्थ सूत्रटीका ( सर्वार्थसिद्धि ) के कर्त्ता कहे गये हैं। वे सुराधीश्वरपूज्यपाद, अप्रतिमौषधर्द्धि, 'विदेहजिनदर्शनपूतगात्र' थे। उनके पादप्रक्षालित जल से लोहा भी सुवर्ण हो जाता था (१०८)* ।।
गोलाचार्य-ये मुनि होने से प्रथम गोल्ल देश के नरेश थे। नूत्न चन्दिल नरेश के वंशचूड़ामणि थे (४७)।
काल्ययोगी-इन्होंने एक ब्रह्मराक्षस को अपना शिष्य बना लिया था। उनके स्मरणमात्र से भूत प्रेत भाग जाते थे। उन्होंने करज के तेल को घृत में परिवर्तित कर दिया था (४७)।
गोपनन्दि-बड़े भारी कवि और तर्क प्रवीण थे। उन्होंने जैन धर्म की वैसी ही उन्नति की जैसी गङ्गनरेशों के समय में हुई थी। उन्होंने धूर्जटि की जिह्वा को भी स्थगित कर दिया था (५५-४६२)।
प्रभाचन्द्र-ये धारा के भोज नरेश द्वारा सम्मानित हुए थे (५५)।
दामनन्दि--इन्होंने महावदि विष्णुभट्ट' को परास्त किया था जिससे वे 'महावादिविष्णुभट्टघरट्ट' कहे गये हैं ( ५५ )।
जिनचन्द्र-ये व्याकरण में पूज्यपाद, तर्क में भट्टाकलङ्क और साहित्य में भारवि थे (५५)।
विशेष जानने के लिये माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला के रत्नकरण्ड श्रावकाचार की भूमिका व 'जैन साहित्य संशोधक' भा० १ अं० २, देखिए
पृ० ६७-६७ ।
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