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________________ प्राचार्यों की वंशावलो १३६ अकलङ्क ( बौद्धों के विजेता, साहसतुङ्गः नरेश के सन्मुख हिमशीतल नरेश की सभा में ) पुष्पसेन ( अकलङ्क के सधर्म ) विमलचन्द्र मुनि-इन्होंने शैवपाशुपतादिवादियों के लिये 'शत्र । भयङ्कर' के भवन-द्वार पर नोटिस लगा दिया था। इन्द्रनन्दि परवादिमल्ल (कृष्णराज के समक्ष) अार्यदेव चन्द्रकीर्ति ( श्रुतविन्दु के कर्ता ) कर्मप्रकृति भट्टारक श्रीपालदेव मतिसागर वादिराज-कृत पार्श्वनाथचरित (शक १४७) से विदिताहोता है कि वादिराज के गुरु मति| सागर थे और मतिसागर के श्रीपाल । हेमसेन विद्याधनञ्जय महामुनि दयालपाल मुनि (रूपसिद्धि के कर्ता, मतिसागर के शिष्य) वादिराज (दयापाल के सहब्रह्मचारी, चालुक्यचक्रेश्वर जयसिंह के कटक में कीर्ति प्राप्त की) श्रीविजय ( वादिराज द्वारा स्तुत्य हेमसेन गुरु के समान) कमलभद्र मुनि दयापाल पण्डित, महासूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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