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१३८ श्रवणबेल्गोल के स्मारक
शक सं० १०५० का लेख नं० ५४ आचार्यों की नामावली में और प्राचार्यों के सम्बन्ध की बहुत सी वार्ता देने में सब लेखों में विशेष महत्वपूर्ण है। किन्तु दुर्भाग्यवश इस लेख में प्राचार्यों का पूर्वापर सम्बन्ध व गुरु-शिष्य-सम्बन्ध स्पष्टतः नहीं बतलाया गया। इससे इस लेख का ऐतिहासिक महत्व उतना नहीं रहता जितना अन्यथा रहता। इस लेख के आचार्यों की नामावली का क्रम लेख में इस प्रकार है
वर्द्धमानजिन गौतमगणधर भद्रबाहु
चन्द्रगुप्त
कुन्दकुन्द समन्तभद्र--वाद में 'धूर्जटि' की जिह्वा को भी स्थगित करनेवाले । सिंहनन्दि वक्रग्रीव-छः मास तक 'अथ' शब्द का अर्थ करनेवाले । वज्रनन्दि ( नवस्तोत्र के कर्ता) पात्रकेसरि गुरु ( विलक्षण सिद्धान्त के खण्डनकर्ता) सुमतिदेव ( सुमतिसप्तक के कर्ता ) कुमारसेन मुनि चिन्तामणि (चिन्तामणि के कर्ता) श्रीवर्द्धदेव (चूड़ामणि काव्य के कर्ता, दण्डी द्वारा स्तुत्य) महेश्वर (ब्रह्मराक्षसों द्वारा पूजित)
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