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आचार्यों की वंशावली मूल संघ, देशीगण, वक्रगच्छ कुन्दकुन्द (मूलसंघाग्रणी) ( उनके अन्वय में)
देवेन्द्र सिद्धान्तदेव
चतुर्मुखदेव (वृषभन्धाचार्य) (इनके ८४ शिष्य थे) ।
गोपनन्दि प्रभाचन्द्र दामनन्दि गणचन्द्र माघनन्दि, जिनचन्द्र, देवेन्द्र
| वासवचन्द्र यश:| कीति ,शुभकीर्ति पं.दे.
त्रिमुष्टिमुनि मलधारिहेमचन्द्र मेघचन्द्र कल्याणकीर्ति बालचन्द्र
(गण्डविमुक्त गौलमुनि) मूल पद्यात्मक लेख के पश्चात् आचार्यों के नामों की गद्य में पुनरावृत्ति है। इस नामावली में ऊपर के भाग से कुछ विशेषतायें पाई जाती हैं। मूलसंघ देशीगण, वक्रगच्छ कुन्दकुन्दान्वय में यहाँ देवेन्द्र सिद्धान्तदेव से प्रथम वडदेव का नामोल्लेख है। देवेन्द्र सिद्धान्तदेव के पश्चात् चतुर्मुखदेव का द्वितीय नाम वृषभन्याचार्य दिया है। चतुर्मुखदेव के शिष्यों में महेन्द्रचन्द्र पण्डितदेव का नाम अधिक है। माघनन्दि के शिष्यों में त्रिरत्ननन्दि का नाम अधिक है। यश:कीत्ति और वासवचन्द्र गोपनन्दि के शिष्यों में गिनाये गये हैं। इनमें चन्द्रनन्दि का नाम अधिक है।
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