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आचार्यो की वंशावली
१२६ कुन्दकुन्दाचार्य जैन इतिहास, विशेषतः दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के इतिहास, में सबसे महत्वपूर्ण पुरुष हुए हैं। वे प्राचीन और नवीन सम्प्रदाय के बीच की एक कड़ी हैं। उनसे पहले जो भद्रबाहु आदि श्रुतज्ञानी हो गये हैं उनके नाममात्र के सिवाय उनके कोई ग्रंथ आदि हमें अब तक प्राप्त नहीं हुए हैं। कुन्दकुन्दाचार्य से कुछ प्रथम ही जिन पुष्पदन्त, भूतबलि आदि आचार्यों ने आगम को पुस्तकारूढ़ किया उनके भी ग्रन्थों का अब कुछ पता नहीं चलता । पर कुन्दकुन्दाचार्य के अनेक ग्रन्थ हमें प्राप्त हैं। आगे के प्रायः सभी प्राचार्यों ने इनका स्मरण किया है और अपने को कुन्दकुन्दान्वय के कहकर प्रसिद्ध किया है। लेखों में दिगम्बर सम्प्रदाय का एक और विशेष नाम मूल संघ पाया जाता है। यह नाम सम्भवत: सबसे प्रथम दिगम्बर संघ का श्वेताम्बर संघ से पृथक निर्देश करने के लिये दिया गया। अनुमान शक संवत् १०२२ के शिलालेख नं० ५५ में कुन्दकुन्द को ही मूल संघ के आदि गणी कहा है यथा
श्रीमता वर्द्धमानस्य वर्द्धमानस्य शासने । श्रीकोण्डकुन्दनामाभून्मूलसंघाग्रणीगणी ॥
पर शिलालेख नं० ४२, ४३, ४७ और ५० ( क्रमशः शकसं० १०६६, १०४५, १०३७ और १०६० ) में गौतमादि मुनीश्वरों का स्मरण कर कहा गया है कि उन्हीं की सन्तान के नन्दि गण में पमनन्दि अपर नाम कुन्दकुन्दाचार्य हुए। लेख
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