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लेखों से तत्कालीन दूध के भाव का अनुमान १२३ है कि उस समय अाठ ‘हण' का सालाना एक ‘हण' व्याज आ सकता था अर्थात् ब्याज की दर सालाना मूल रकम का अष्टमांश थी। इसके अनुसार शा2) भर सोने का साल भर का ब्याज 5 (पौने चार आना ) भर सोना हुआ। अतएव स्पष्ट है कि शक की बारहवीं शताब्दी के लगभग अर्थात् प्राज से छः सात सौ वर्ष पूर्व दक्षिण भारत में पौने चार आना भर सोने का २१६० सेर दूध बिकता था। इसे आजकल के चाँदी सोने के भाव के अनुसार इस प्रकार कह सकते हैं कि उक्त समय एक रुपया का लगभग साढ़े नौ मन दूध आता था। ___ इसी प्रकार लेख नं०६४ (२४४) में जो नित्यप्रति ३ मान दूध के लिये ४ गद्याण के दान का उल्लेख है उसका हिसाब लगाने से २१६० सेर दूध की कीमत पाँच आना भर सोना निकलती है। शक सं० १२०१ के लेख १३१ ( ३३६ ) में नित्यप्रति एक 'बल्ल दूध के लिये पाँच 'गद्याण' के दान का उल्लेख है जिसके अनुसार ३६० 'बल्ल' दूध की कीमत सवा छः आना भर सोना निकलती है। बल्ल सम्भवतः उस समय 'मान' से बड़ा कोई माप रहा है* ।
* 'गद्याण' और 'मान' का अर्थ मुझे श्रीयुक्त पं० नाथरामजी प्रेमी द्वारा विदित हुआ है। उन्होंने श्रवण वेल्गोला से समाचार में गाकर अपने पहले पत्र में मुझे इस प्रकार लिखा था-"गधाण = यह साप अनुमान १ तोले के बराबर होता है और एक सुवर्ण नाण्य (?) को
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