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________________ १२२ श्रवणबेलगोल के स्मारक ___ लेख नं० १३४ (३४२ ) में कहा गया है कि हिरियअय्य के शिष्य गुम्मटन ने चन्द्रगिरि पर की चिक्कबस्ति, उत्तरीय दरवाजे पर की तीन बस्तियों और मङ्गायि बस्ति का जीर्णोद्धार कराया। लेख नं. ३७० ( २७०) के अनुसार बेगूरु के बैयण ने एक बड़ा होज और छप्पर बनवाया। नं० ४६८ (५००) के अनुसार एक साध्वी स्त्री जिन्न ने एक मन्दिर को रथ का दान दिया, व नं० ४८३ के अनुसार महेय नायक ने एक नन्दिस्तम्भ बनवाया । लेखों से तत्कालीन दूध के भाव का अनुमान. अनेक लेखों में मस्तकाभिषेक के हेतु दुग्ध के लिये दान दिये जाने के उल्लेख हैं जिनसे उस समय के दूध के भाव का कुछ ज्ञान हो सकता है। उदाहरणार्थ, शक सं० ११६७ के एक लेख नं. ६५ ( २४५ ) में कहा गया है कि हलसूर के केतिसेट्टि ने गोम्मटदेव के नित्याभिषेक के लिये ३ मान दुध के लिये ३ गद्याण का दान दिया। यह दूध उक्त रकम के ब्याज से जब तक सूर्य और चन्द्र हैं तब तक लिया जावे । गद्याण दक्षिण भारत का एक प्राचीन सोने का सिक्का है जो करीब दस आना भर होता है, और मान दक्षिण भारत का एक माप है जो ठीक दो सेर का होता है। अतएव स्पष्ट है कि १॥ भर (दो आना कम दो तोला) सोने के साल भर के व्याज से ३६० x ३४२ =२१६० सेर दूध प्राता था। शक सं० ११२८ के लेख नं० १२८ (३३३) से ज्ञात होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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