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________________ १२१ जीर्णोद्धार और दान लेख में उल्लेख है कि बेल्गोल के समस्त व्यापारियों ने 'संघ' से कुछ भूमि खरीद कर उसे मालाकार को गोम्मटेश की पूजा में पुष्प देने के लिये दान कर दी। लेख नं. ६१ ( २४१) में कथन है कि बेल्गोल के समस्त व्यापारियों ने गोम्मटेश और पार्श्वदेव की पूजा में पुष्पों के लिये प्रतिवर्ष कुछ चन्दा देने का वचन दिया। लेख नं. ६३ ( २४३ ) के अनुसार चेन्नि सेट्टि के पुत्र व चन्द्रकीर्ति भट्टारक के शिष्य कल्लय्य ने कुछ द्रव्य का दान इस हेतु दिया कि कम से कम पुष्पों की छः मालायें प्रतिदिवस गोम्मटदेव और तीर्थ करों का चढ़ाई जावें। लेख नं० ६४, ६५, ६७ व ३३० (२४४, २४५, २४७, २००) में गोम्मटेश के प्रतिदिन अभिषेक के हेतु दुग्ध के लिये दान का उल्लेख है। इन लेखों में दुग्ध का परिमाण भी दिया गया है। और बेल्गोल के व्यापारी इस कार्य के प्रबन्धक नियुक्त किये गये हैं। लेख नं० १०६ ( २५५ ) (शक सं० १३३१ ) में गोम्मटेश की मध्याह्न पूजन के हेतु दान का उल्लेख है। लगभग शक सं०११०० के लेख नं०८६,८७, ३६१ (२३५, २३६,२५२) में बसविसेट्टि द्वारा स्थापित चतुर्विशति तीर्थ करों की अष्टविध पूजा के हेतु व्यापारियों के वार्षिक चन्दों का उल्लेख है। इसी प्रकार लेख नं. ६६-१०२, १३१, १३५, १३७,४५४ और ४७५ में भिन्न भिन्न सत्पुरुषों द्वारा भिन्न-भिन्न देवों और मन्दिरों की भिन्न भिन्न प्रकार की सेवा और पूजा के हेतु भिन्न-भिन्न समय पर नाना प्रकार के दानों का उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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