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श्रवणबेलगोल के स्मारक वाल और सरावगी जातियों के थे। अग्रवालों के अन्तर्गत ही वे सब अवान्तर भेद पाये जाते हैं जिनका उल्लेख लेखों में आया है; यथा-नरथनवाला, सहनवाला, गङ्गानिया इत्यादि । अनेक यात्रियों ने अपने को 'पानीपथीय' कहा है जिससे विदित होता है कि वे 'पानीपत' के थे। लेखों में गोयल और गर्ग गोत्रों व स्थानपेठ और मांउनगढ़ स्थानों के नाम भी आये हैं। इन लेखों का समय लगभग शक सं० १६७० से १७१० तक है।
जीर्णोद्धार और दान-मन्दिरादिनिर्माण, जीर्णोद्धार और पूजाभिषेकादि के हेतु दान से सम्बन्ध रखनेवाले लेखों की संख्या लगभग दो सौ है। मन्दिरादिनिर्माण के विषय के लेखों का उल्लेख पहले मन्दिरों आदि के वर्णन में भा चुका है। यहाँ शेष लेखों में के मुख्य २ का कुछ परिचय दिया जाता है। शक सं० ११०० के लगभग के लेख नं० ८८ ( २३७ ), ८६ ( २३८) और ६२ ( २४२ ) में गोम्मटेश्वर की पूजा के हेतु पुष्पों के लिये दान का उल्लेख है। प्रथम लेख में कहा गया है कि महापसायित विजपण के दामाद चिक्क मदुकण्ण ने महामण्डलाचार्य चन्द्रपभदेव से कुछ भूमि मोल लेकर उसे गोम्मटेश की नित्य पूजा में बीस पुष्पमालाओं के लिये लगा दो। द्वितीय लेख में कथन है कि सोमेय के पुत्र कविसेट्टि ने उक्त देव की पूजार्थ पुष्पों के लिये कुछ भूमि का दान महामण्डलाचार्य चन्द्रप्रभदेव को दिया। तीसरे
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