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यात्रियों के लेख उत्तर भारत के यात्रियों के लेखों की संख्या लगभग ५३ है। ये सब मारवाड़ी-हिन्दी भाषा में हैं। लिपि के अनुसार ये लेख दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं। ३६ लेखों की लिपि नागरी है और १७ की महाजनी । नागरी लेखों का समय लगभग शक सं० १४०० से १७६० तक है। इनमें के दो लेख स्याही से लिखे हुए हैं। इन लेखों में के अधिकांश यात्री काष्ठा संघ के थे जिनमें के कुछ मण्डितटगच्छ के थे। यह गच्छ काष्ठा संघ के ही अन्तर्गत है। कुछ यात्रियों के साथ उनकी वघेरवाल जाति व गोनासा और पीला गोत्र का उल्लेख है। कुछ लेखों में यात्रियों के निवासस्थान पुरस्थान, माडवागढ़ व गुडघटीपुर का उल्लेख है। महाजनी लिपि के १७ लेख उस विचित्र लिपि के हैं जिसे मुण्डा भाषा कहते हैं । इसकी विशेषता यह है कि इसमें मात्रायें प्रायः नहीं लगाई जाती। केवल 'अ' और 'इ' की मात्राओं से ही अन्य सब मात्राओं का भी काम निकाल लिया जाता है। व्यञ्जनों में 'ज' और 'झ', 'ट' और 'ठ', 'ड' और 'ण', 'भ' और 'व' में कोई भेद नहीं रक्खा जाता। यह भाषा आगरा, अवध और पजाब प्रदेशों के व्यापारी महाजनों में प्रचलित है। कुछ लेखों में 'टाकरी' लिपि के अक्षर भी पाये जाते हैं, जो पजाब के पहाड़ी हिस्सों में प्रचलित हैं। इस पर से अनुमान किया जा सकता है कि उक्त सब प्रदेशों से यात्री इस तीर्थस्थान की वन्दना को आते थे। उल्लिखित यात्रियों में अधिकांश अप्र
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