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श्रवणबेलगोल के स्मारक हो। केवल उपाधियों में से कुछ इस प्रकार हैं-समधिगत पञ्चमहाशब्द; महामण्डलेश्वर, श्रीराजन् चट्ट ( राजव्यापारी), श्रीबडवरबण्ट (गरीबों का सेवक), रणधीर, इत्यादि। उपाधिसहित नामों के उदाहरण इस प्रकार हैं-श्री ऐचय्य-विरोधिनिष्ठुर, श्रीजिनमार्गनीति-सम्पन्न-सर्पचूडामणि, श्रावत्सराज बालादित्य, अरिट्टनेमि पण्डित परसमयध्वंसक, इत्यादि । जिनके साथ में यह भी कहा गया है कि उन्होंने देव की व तीर्थ की वन्दना की, उनमें से कुछ के नाम ये हैं-मल्लिषेण भट्टारक के शिष्य चरेङ्गय्य, अभयनन्दि पण्डित के शिष्य कोत्तय्य, श्रीवर्मचन्द्रगीतय्य, नयनन्दि विमुक्तदेव के शिष्य मधुवय्य, नागति के राजा इत्यादि। कुछ शिल्पियों के नाम भी हैं, जैसे- गण्डविमुक्तसिद्धान्तदेव के शिष्य श्रीधरवोज, बिदिग, वबोज, चन्द्रादित और नागवर्म।
इस प्रकार के शिलालेख यों तो निरुपयोगी समझ पड़ते हैं पर इतिहासखोजक के लिये कभी-कभी ये ही बड़े उपयोगी सिद्ध होते हैं। कम से कम उनसे यह बात तो सिद्ध होती ही है कि कितने प्राचीन समय से उक्त स्थान तीर्थ माना जाता रहा है और यति, मुनि, कवि, राजा, शिल्पी, आदि कितने प्रकार के यात्रियों ने समय समय पर उस स्थान की पूजा वन्दना करना अपना धर्म समझा है। इससे उस स्थान की धार्मिकता, प्राचीनता और प्रसिद्धि का पता चलता है।
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