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आचार्यों की वंशावली जैन इतिहास की दृष्टि से वे लेख बहुत महत्वपूर्ण हैं जिनमें प्राचार्यों की परम्परायें दी हैं। प्रस्तुत संग्रह के दस बारह लेखों में ऐसी परम्परायें व पट्टावलियाँ पाई जाती हैं। इस सम्बन्ध में सबसे पहले हम उन लेखों को लेते हैं जिनमें उन सुगृहीतनाम आचार्यों का क्रमबद्ध उल्लेख पाया है जिन्होंने महावीर स्वामी के पश्चात् जैन आगम का अध्ययन
और प्रचार किया। ऐसे लेख नं० १ और १०५ ( २५४ ) हैं। इनमें उक्त आचार्यों की निम्नलिखित परम्परा पाई जाती है। मिलान के लिये साथ में हरिवंश पुराण की गुर्वावली भी दी जाती है। भी कहते हैं। मान = यह अनुमान एक सेर के बराबर होता है। इनका प्रचार प्राचीन काल में था अब नहीं है।" इसके पश्चात् उनका दूसरा पत्र आया जिसमें निम्नलिखित वार्ता थी-"गद्याण पुराने समय का सोने का सिक्का है जो करीब दस आने भर होता है। अब यह नहीं चलता। चार गुजाओं का एक हणा, नौ हणाओं का एक बरहा और दो बरहा का एक गद्याण ! मान ठीक दो सेर का होता है । अब इसको 'बल्ला' बोलते हैं। खेड़ों में इसका प्रचार है और अनाज मापने के काम में यह पाता है। पहले दूध, दही, घी भी इससे मापा जाता था।" ऊपर के विवेचन में दूसरे पत्र का ही आधार लिया गया है। इसके अनुसार 'मान' और 'बल्ला' एक ही बराबर ठहरते हैं पर जैसा कि ऊपर कहा गया है, प्राचीन काल का 'बल्ल' सम्भवतः मान से बड़ा रहा है।
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