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________________ ११६ श्रवणबेलगोल के स्मारक में एक माह का उल्लेख है। सबसे प्राचीन लेख समाधिमरण के विषय के ही हैं। लेख नं० १ जो सब लेखों में प्राचीन है, भद्रबाहु के ( व कुछ विद्वानों के मतानुसार प्रभाचन्द्र के) समाधिमरण का उल्लेख करता है। इसका विवेचन ऊपर किया जा चुका है। इस लेख की लिपि छठवीं सातवीं शताब्दि की अनुमान की जाती है। इसी प्रकार जैन इतिहास के लिये सबसे महत्वपूर्ण लेख भी इसी विषय के हैं। देवकीर्ति प्रशस्ति नं० ३६-४० (६३-६४) शुभचन्द्र प्रशस्ति नं० ४१ (६५), मेघचन्द्र प्रशस्ति ४७ (१२). प्रभाचन्द्र पशस्ति ५० (१४०) मल्लिषेण प्रशस्ति ५४ (६७), पण्डितार्य प्रशस्ति १०५ (२५४), व श्रुतमुनि प्रशस्ति १०८ (२५८) में उक्त आचार्यों के कीर्ति-सहित स्वर्गवास का वर्णन है। लेख नं० १५६ ( २२ ) में कहा गया है कि कालत्तूर के एक मुनि ने कटवप्र पर १०८ वर्ष तक तपश्चरण करके समाधिमरण किया। इन्हीं लेखों में प्राचार्यों की परम्पराये व गण गच्छों के समाचार पाये जाते हैं, जिनका सविस्तर विवेचन आगे किया जावेगा। यात्रियों के लेख-जैन औपदेशिक ग्रन्थों में श्रावकधर्म के अन्तर्गत तीर्थयात्रा का भी विधान है। जिन स्थानों पर जैन तीर्थ करों के कल्याणक हुए हैं व जिन स्थानों से मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया है व जहाँ अन्य कोई असाधारण धार्मिक घटना घटी हो वे सब स्थान 'तीर्थ' कहलाते हैं। गृहस्थों को समय समय पर पुण्य का लाभ करने के हेतु इन स्थानों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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