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________________ ११४ श्रवणबेलगोल के स्मारक कहीं व्रत व उपवास व अनशन द्वारा मरण व स्वर्गारोहण कहा है । अनेक स्थानों पर सल्लेखना मरण की सूचना केवल मुनियों व श्रावकों की निषद्याओं ( स्मारकों) से चलता है । सोखना क्यों और किस प्रकार की जाती थी इसके सम्बन्ध में प्राचीन जैन ग्रन्थों में समाचार मिलते हैं । इस विषय पर समन्तभद्र स्वामी कृत रत्नकरण्ड श्रावकाचार में इस प्रकार कहा है उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निःप्रतीकारे । धर्माय तनुविमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः ॥ १ ॥ स्नेहं वैर सङ्ग परिग्रहं चापहाय शुद्धमनाः । स्वजनं परिजनमपि च क्षान्त्वा चमयेत्प्रियवचनैः ॥ २ ॥ आलोच्य सर्वमेनः कृतकारितमनुमत च निर्व्याजम् । आरोपयेन्महाव्रतमामरणस्थायि निश्शेषम् ॥ ३ ॥ शोकं भयमवसादं क्लेद कालुष्यमरतिमपि हित्वा । सत्वेोत्साहमुदीर्य च मनः प्रसाद्यं श्रुतैरमृतैः ॥ ४ ॥ आहार परिहाप्य क्रमशः स्निग्धं विवर्धयेत्पानं । स्निग्ध च हापयित्वा खरपानं पूरयेत्क्रमशः || ६ || खरपानहापनामपि कृत्वा कृत्वोपवासमपि शक्तया । पञ्चनमस्कारमनास्तनुं त्यजेत्सर्वयत्नेन ॥ ६ ॥ अर्थात् " जब कोई उपसर्ग व दुर्भिक्ष पड़े. व बुढ़ापा व व्याधि सतावे और निवारण न की जा सके उस समय धर्म की रक्षा के हेतु शरीर त्याग करने को सल्लेखना कहते हैं। इसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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