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श्रवणबेलगोल के स्मारक सन् ८०० का है और प्रस्तुत लेख उससे कोई दो सौ वर्ष प्राचीन अनुमान किया जाता है। लेख नं० १४ (३४) की नागसेन प्रशस्ति में नागनायक नाम के एक सामन्त राजा का उल्लेख है। लेख नं० ५५ (६६) में कहा गया है कि प्रभाचन्द्र धाराधीशभोज द्वारा व यश:कीर्ति सिंहलनरेश द्वारा सम्मानित हुए थे। लेख नं० ५४ ( ६७ ) में कथन है कि अकलङ्क देव ने हिमशीतल नरेश की सभा में बौद्धों को परास्त किया था व चतुर्मुखदेव ने पाण्ड्य नरेश द्वारा स्वामी की उपाधि प्राप्त की थी। लेख नं० ३७ (१४५) में गरुड़केसिराज व नं० २६६ (४५७ ) में बालादित्य, वत्सनरेश, का उल्लेख है। लेख नं० ४० (६४ ) में सामन्त केदार नाकरस कामदेव व निम्बदेव माघनन्दि के, व दण्डनायक मरियाणे और भटत व बूचिमय्य और कोरय्य गण्डविमुक्तदेव के शिष्य कहे गये हैं। निम्ब के माधनन्दि के शिष्य होने का समाचार तेरदाल के एक लेख ( इ. ए. १४, १४ ) में भी पाया जाता है। शुभचन्द्र के शिष्य एमनन्दि ने अपनी 'एकत्वसतति' में उन्हे सामन्तचूड़ामणि कहा है। नं. ४७७ ( ३८७ ) में सिंग्यपनायक व नं० ४१ (६५) में बेलु केरे के राजा गुम्मट का उल्लेख है। गुम्मट ने शुभचन्द्र देव की निषद्या बनवाई थी। लेख नं० १०५ ( २५४ ) में हरियण और माणिकदेव नामक दो सामन्त राजाओं के पण्डितार्य के शिष्य होने का उल्लेख है।
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