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________________ निडुगलव श चङ्गनाडु (अाधुनिक हुणसूर तालुका) था। लेखनं० १०३ (२८८) में कथन है कि इस वश के एक नरेश कुलोत्तुङ्ग चङ्गाल्व महादेव के मन्त्री के पुत्र ने गोम्मटेश्वर की ऊपरी मन्जिल का शक सं० १४२२ में जीर्णोद्धार कराया । उक्त नरेश का उल्लेख एक और लेख में भी पाया गया है (ए. क. ४, हणसुर ६३ ) निडगलवश निडुगल नरेश सूर्यवंशी थे और अपने को करिकाल चोल के वशज कहते थे। वे ओरेयूराधीश्वर की उपाधि धारण करते थे। ओरेयूर ( त्रिचनापल्ली के समीप) चोल राज्य की प्राचीन राजधानी थी। ये नरेश चोल महाराजा भी कहलाते थे। उनकी राजधानी पेजेरु थी जो अब अनन्तपुर जिले में हेमावती कहलाती है। होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन के समय इस वश का एक 'इरुङ्गोल' नाम का राजा राज्य करता था। लेख नं० ४२ (६६) में उसके नयकीर्ति सिद्धान्तदेव के शिष्य होने व लेख नं० १३८ ( ३४६) में उसके विष्णुवर्द्धन द्वारा हराये जाने का उल्लेख है। उपयुक्त राजकुलों के अतिरिक्त कुछ लेखों में और भी फुटकर राजानों व राजव'शों का उल्लेख है। लेख नं० १५२ (११) में अरिष्टनेमि गुरु के समाधिमरण के समय दिण्डिकराज उपस्थित थे। दिण्डिक का उल्लेख एक और लेख (सा. इ. इ. २-३८१ ) में भी आया है पर वह लेख लगभग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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