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१०६ श्रवणबेलगोल के स्मारक शिलालेख पढ़वाये। उन्होंने यह ज्ञात किया कि किस प्रकार चामुण्डराय बेलगोल आये थे और अपने गुरु नेमिचन्द्र की प्रेरणा से उन्होंने गोम्मटेश्वर को एक लाख छयानवे हजार 'वरह' की आय के ग्रामों का दान दिया था। इसके पश्चात् नरेश सिद्धर बस्ति में गये और वहाँ के लेखों से जैनाचार्यों की वंशावली, उनके महत्व व उनके कार्यों का परिचय प्राप्त किया। फिर उन्होंने यह पूछा कि अब गुरु कहाँ गये। बम्मण कवि, जो मन्दिर के अध्यक्षों में से थे, ने उत्तर दिया कि जगदेव के तेलुगु सामन्त के त्रास के कारण गोम्मटेश्वर की पूजा बन्द कर दी गई है और गुरु चारुकीर्ति उस स्थान को छोड़ भैरवराज की रक्षा में भल्लातकीपुर ( गेरुसोप्पे ) में रहते हैं। इस पर नरेश ने गुरु को बुला लेने के लिये कहा और नया दान देने का वचन दिया। फिर उन्होंने भण्डारि बस्ति के दर्शन किये और चन्द्रगिरि के सब मंदिरों के दर्शन कर वे सेरिङ्गापट्टम को लौट गये। पदुमण सेट्टि और पदुमण पण्डित चारुकीर्ति को लेने के लिये भल्लातकीपुर भेजे गये। उनके आने पर वे सत्कार से बेल्गोल पहुँचाये गये और राजा ने वचनानुसार दान दिया। उपरोक्त वर्णन में जिस जगदेव का उल्लेख आया है वह चेन्नपट्टन का सामन्त राजा था। वह शक सं० १५५२ में चामराज द्वारा हराकर राज्यच्युत कर दिया गया।
लेख नं० ४४४ ( ३६५) में चिकदेवराज प्रोडेयर द्वारा बेल्गोल में एक कल्याणी ( कुण्ड ) निर्माण कराये जाने का
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