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मैसूर राजवंश
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कथन है कि इरुप ने विजयनगर में कुंथ जिनालय निर्माण कराया । लेख नं० १२५ (३२८ ) और १२७ ( ३३० ) में देवराय द्वितीय की क्षय संवत्सर ( शक १३६८ ) में मृत्यु का उल्लेख है ।
मैसूर राजवंश
लेख नं० ८४ (२५० ) शक सं० १५५६ का है। इसमें मैसूर नरेश चामराज ओडेयर द्वारा बेल्गोल के मंदिरों की जमीन के, जो बहुत दिनों से रहन थी, मुक्त कराये जाने का उल्लेख है। नरेश ने जिन लोगों को इस अवसर पर बुलवाया था उनमें भुजबल चरित के कर्ता पञ्चबाण कवि के पुत्र बोम्यप्प व कवि बोमण्णा भी थे । इसी विषय का कुछ और विशेष विवरण लेख नं० १४० ( ३५२ ) ( शक १५५६ ) में पाया जाता है । इस लेख में राजा की ओर से मंदिर की भूमि रहन करने व कराने का निषेध किया गया है । यद्यपि लेखे में इस बात का उल्लेख नहीं है तथापि यह प्राय: निश्चय ही है कि उक्त विषय के निर्णय के लिये नरेश बेल्गोल अवश्य गये होंगे । चिदानन्द कवि के मुनिवंशाभ्युदय में नरेश की बेलगोल की यात्रा का इस प्रकार वर्णन है । " मैसूर नरेश चामराज बेल्गोल में आये और गर्भगृह में से गोम्मटेश्वर के दर्शन किये । फिर उन्होंने द्वारे पर आकर दोनों बाजुओं के
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