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श्रवणबेलगोल के स्मारक शान्तिनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। लेख में माघनन्दि प्राचार्यों की परम्परा भी दी है। ___ लेख नं०६६ ( २४६ ) (शक ११६६) में वीर नारसिंह तृतीय ( सोमेश्वर के पुत्र व नारसिंह द्वितीय के प्रपौत्र) का उल्लेख है। लेख नं० १२६ ( ३३४ ) (शक १२०५ ) भो सम्भवतः इसी राजा के समय का है। इस लेख में होय्सल वश की स्तुति है, और कहा गया है कि उस समय के नरेश के गुरु मेघनन्दि थे। ये ही सम्भवतः शास्त्रसार के कर्ता थे जिसका उल्लेख लेख के प्रथम पद्य में ही है। (सारांश के लिये देखो लेख नं० ६६ )।
लेख नं० १०५ ( २५४ ) (शक १३८० ) के ४६ वें पद्य में व लेख नं. १०८ (२५८) (शक १३५५ ) के २६ वें पद्य में उल्लेख है कि बल्लाल नरेश की एक घोर व्याधि से चारुदत्त गुरु ने रक्षा की थी। यह नरेश इस वंश के बल्लाल प्रथम, विष्णुवर्धन के ज्येष्ठ भ्राता हैं जिन्होंने बहुत अल्पकाल राज्य किया था। 'भुजबलि शतक' में कहा गया है कि इस नरेश को पूर्वजन्म के संस्कार से भारी प्रेत बाधा थी जिसे चारुकीति ने दूर की। इसी से इन प्राचार्य को 'बल्लालजीवरक्षक' की उपाधि प्राप्त हुई।
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