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________________ १८ श्रवणबेल्गोल के स्मारक के लिये देखो लेख नं. १६२४)। उनके गुरु नयकीर्ति और बालचन्द्र थे। लेख में कहा गया है कि चन्द्रमौलि की प्रार्थना पर बल्लालदेव ने प्राचलदेवी द्वारा निर्मापित मंदिर के हेतु बम्मेयन हल्लिग्राम का दान दिया। लेख में और भी दानों का उल्लेख है। उक्त दान का उल्लेख उसी ग्राम के लेख नं० ४६४ (शक ११०४ ) तथा लेख नं. १०७ ( २५६ ) और ४२६ ( ३३१ ) में भी है। लेख नं० १३० ( ३३५) में विनयादित्य से लगाकर होयसल नरेशों के परिचय के पश्चात् महामण्डलाचार्य नयकीर्ति की कीर्ति का वर्णन है और फिर नरेश के 'पट्टणस्वामी' नागदेव का परिचय है। देखो लेख नं० १३०)। नागदेव के अपने गुरु नयकीर्ति की निषद्या बनवाने का उल्लेख लेख नं. ४२ (६६ ) में भी है। नागदेव के कुछ और सत्कृत्यों और कुछ आचार्यों का परिचय लेख नं. १२२ ( ३२६ ) और ४६० (४०७ ) में पाया जाता है। लेख नं. ४७१ ( ३८० ) में वसुधैकबान्धव रेचिमय्य के जिननाथपुर में शान्तिनाथ की प्रतिष्ठा कराने व शुभचन्द्र विद्य के शिष्य सागरनन्दि को उस मंदिर के प्राचार्य नियुक्त करने का उल्लेख है। यद्यपि इस लेख में किसी नरेश का उल्लेख नहीं है तथापि अन्य शिलालेखों से ज्ञात होता है कि रेचिमय्य इन्हीं बल्लालदेव के सेनापति थे। बल्लालदेव के पास आने से प्रथम वे कलचुरि नरेशों के मन्त्री थे। ( मै० प्रा० रि० १६०६, पृ० २१; ए. क० ५, अर्सिकेरे ७७, ए० क० ७, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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