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________________ होयसल वंश ६७ वे सनिवार सिद्धि, गिरिदुर्गमल्ल व कुम्मट और एरम्बरगे के उनकी उच्छङ्गि की विजय का बड़ा लेख नं० ४८१ ( शक इसमें इन विजेता भी कहे गये हैं। वीरतापूर्ण वर्णन दिया गया है । १०-८५ ) इस राज्य का सबसे प्रथम लेख है । नरेश और उनके दण्डाधिप हुल्ल का परिचय है । नरेश ने चतुर्विंशति तीर्थकर की पूजन के हेतु मारुहल्लिग्राम का दान दिया व हुल्ल के अनुरोध से बेक ग्राम के दान का समर्थन किया । यह दान नयकीर्ति के शिष्य भानुकीर्ति को दिया गया । लेख नं० -६० (२४० ) में गङ्गराज की कीर्ति का वर्णन, व गुणचन्द्र के पुत्र नयकीर्त्ति का, नारसिंह प्रथम की बेलगोल की वन्दना का तथा बल्लाल द्वारा नारसिंह के दान के समर्थन का उल्लेख पाया जाता है । लेख के अन्तिम भाग में कथन है कि नयकीर्ति के शिष्य अध्यात्मि बालचन्द्र ने एक बड़ा जिन मंदिर, एक बृहत् शासन, अनेक निषद्यायें व बहुत से तालाब आदि अपने गुरु की स्मृति में निर्माण कराये । लेख नं० १२४ ( ३२७ ) ( शक ११०३ ) में नरेश के मन्त्री चन्द्रमौलि की भार्या आचियक द्वारा बेल्गोल में पार्श्वनाथ बस्ति निर्माण कराये जाने का उल्लेख है 1 यह बस्ति अब प्रक्कन बस्ति के नाम से प्रसिद्ध है । चन्द्रमौलि शम्भूदेव और अक्कब्बे के पुत्र थे । वे शिवधर्मी ब्राह्मण थे और न्याय, साहित्य, भरत शास्त्र आदि विद्याओं में प्रवीण थे । उनकी भार्या आचियक्क व आचल देवी जिनभक्ता थी । ( प्रचलदेवी की वंशावली छ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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