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श्रवणबेलगोल के स्मारक
बङ्कापुर और कलिविट के जिनमन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया, कोण में जैनाचार्यो के हेतु बहुत सी जमीन लगाई, केलङ्ग रे में छ:- नवीन जिनमन्दिर बनवाये और बेलगोल में चतुर्विंशति तीर्थकर मन्दिर बनवाया उन्होंने गुणचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य महामण्डलाचार्य नयकीर्ति सिद्धान्तदेव को इस मन्दिर के प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया । लेख नं० ६० (२४० ) में भी नारसिंह की बेलगोल की वन्दना का उल्लेख है। इस लेख से विदित होता है कि सवरु के प्रतिरिक्त नरेश ने दो और ग्रामों—बेक और कगोरे― का दान दिया
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था । हुल्ल की प्रार्थना से इसी दान का समर्थन बल्लाल द्वितीय ने भी किया था ( ४-६१ ) । लेख नं० ८० (१७८ ) और ३१६ ( १८१ ) में भी इस दान का उल्लेख है । लेख नं० ४० ( ६४ ) में उल्लेख है कि हुल्ल ने अपने गुरु महामण्डलाचार्य देवकीर्ति पण्डितदेव की निषद्या निर्माण कराई जिसकी प्रतिष्ठा उन्होंने उनके शिष्य लक्खनन्दि, माधव और त्रिभुवनदेव . द्वारा कराई। लेख नं० १३७ ( ३४६ ) में हुल्ल की भार्या पद्मावती के गुणों का वर्णन है इस लेख में भी हुल्ल के नयकीर्ति के पुत्र भानुकीर्ति को सवणेरु ग्राम का दान करने का उल्लेख है ।
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नारसिंह प्रथम और उनकी रानी एचलदेवी के बल्लालदेव द्वितीय हुए। लेख नं० १२४ ( ३२७ ) १३० ( ३३४ ) और ४८१ में इनके वंश व उपाधियों आदि का वर्णन है ।
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