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________________ ६४ श्रवणबेलगोल के स्मारक शिष्य थे और अन्य शिलालेखों ( नागमङ्गल ३२ ए० क - ४; चिकमगलूर १६० ए० क० ६ ) से सिद्ध है कि वे और उनके बड़े भाई मरियाणे विष्णुवर्द्धन नरेश के सेनापति थे । लेख नं० ४० (६४ ) ( शक १०८५ ) में भी भरत के गण्डविमुक्तदेव के शिष्य होने का उल्लेख है । लेख नं० ११५ (२६७ ) से विदित होता है कि भरतेश्वर ने जिन दो मूर्तियों की स्थापना कराई थी वे भरत और बाहुबली स्वामी की मूर्तियाँ थीं । इस लेख में भरतेश्वर के अन्य धार्मिक कृत्यों का भो उल्लेख है । उन्होंने उक्त दोनों मूर्तियों के आसपास कटघर ( हप्पलिगे ) बनवाया, गोम्मटेश्वर के आसपास बड़ा गर्भगृह बनवाया, सीढ़ियाँ बनवाई तथा गङ्गवाडि में दो पुरानी बस्तियों का उद्धार कराया और अस्सी नवीन बस्तियाँ निर्माण कराई । यह लेख भरत की पुत्री शान्तलदेवी ने लिखवाया था । लेख नं०६८ (१५६) और ३५१ (२२१ ) भी इसी नरेश के समय के विदित होते हैं उनमें कुछ जिन भक्त पुरुषों का उल्लेख है । विष्णुवर्द्धन और लक्ष्मीदेवी के पुत्र नारसिंह प्रथम हुए जिनकी उपाधियों आदि का उल्लेख लेख नं० १३७ ( ३४५ ) और १३८ (३४६ ) में है । लेख नं० १३८ ( ३४६ ) में उल्लेख है कि उक्त नरेश के भण्डारि और मन्त्रो हुल्ल ने बेलगोल में चतुर्विंशति जिनमन्दिर निर्माण कराया यह मन्दिर भण्डारि बस्ति के नाम से प्रसिद्ध है। लेख में विनयादित्य से । लगाकर नारसिंह प्रथम तक के वर्णन और हुल्ल के वंशपरिचय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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