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श्रवणबेलगोल के स्मारक भयभैषज्यशास्त्रदानविनोद, भव्यजनहृदयप्रमोद, विष्णुवर्धनभूपालहोय्सलमहाराजराज्याभिषेकपूर्णकुम्भ, धर्महर्योद्धरणमूलस्तम्भ और द्रोहघरट्ट। इसी लेख में यह भी कहा गया है कि गङ्गराज के पिता मुल्लर के कनकनन्दि प्राचार्य के शिष्य थे। चालुक्यवंशवर्णन में कहा जा चुका है कि इन्होंने कन्नेगाल में चालुक्य-सेना को पराजित किया था। उनके तलकाडु, कोङ्ग, चेङ्गिरि आदि स्वाधीन करने, नरसिंग को यमलोक भेजने, अदिपम, तिमिल, दाम, दामोदरादि शत्रुओं को पराजित करने का वर्णन लेख नं० ६० ( २४० ) के ६, १० व ११ पद्यों में पाया जाता है। जिस प्रकार इन्द्र का वन, बलराम का हल, विष्णु का चक्र, शक्तिधर की शक्ति व अर्जुन का गाण्डीव उसी प्रकार विष्णुवर्धन नरेश के गङ्गराज सहायक थे। गङ्गराज जैसे पराक्रमी थे वैसे ही धर्मिष्ठ भी थे। उन्होंने गोम्मटेश्वर का परकोटा बनवाया, गङ्गवाडि परगने के समस्त जिनमन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया, तथा अनेक स्थानों पर नवीन जिनमन्दिर निर्माण कराये। प्राचीन कुन्दकुन्दान्वय के वे उद्धारक थे। इन्हीं कारणों से वे चामुण्डराय से भी सौगुणे अधिक धन्य कहे गये हैं। धर्म बल से गङ्गराज में अलौकिक शक्ति थी। लेख नं० ५६ ( ७३ ) के पद्य १४ में कहा गया है कि जिस प्रकार जिनधर्माग्रणी अत्तियब्बरसि के प्रभाव से गोदावरी नदी का प्रवाह रुक गया था उसी प्रकार कावेरी के पूर से घिर जाने पर भी, जिनभक्ति के
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