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श्रवणबेलगोल के स्मारक
सूचक पदवियों से विभूषित किये गये हैं। उन्होंने इतने दुर्जय दुर्गा जीते, इतने नरेशों को पराजित किया व इतने आश्रितों को उच्च पदों पर नियुक्त किया कि जिससे ब्रह्मा भी चकित हो जाता है । लेखों में उनकी विजयों का खूब वर्णन है । लेख नं० २२ (१३७) जो शक सं० १०३९ का है विष्णुवर्द्धन के राज्यकाल का ही है । इस लेख में पोटसलसेट्टि और नेमिट्टि नाम के दो राजव्यापारियों का उल्लेख हैं। इन व्यापारियों की माताओं माचिकब्वे और शान्तिकन्ये ने जिनमन्दिर और नन्दीश्वर निर्माण कराकर भानुकीर्ति मुनि से जिन दीक्षा ले ली । यह मन्दिर चन्द्रगिरि पर तेरिन बस्ति के नाम से प्रसिद्ध है । लेख नं० ४४५ ( ३६६ ) अधूरा है पर इसमें विष्णुवर्द्धन का उल्लेख है । नं० ४७८ ( ३८८ ) से ज्ञात होता है कि इस नृपति के हिरियदण्डनायक, स्वामिद्रोहघरट्ट गङ्गराज ने बेल्गुल में जिननाथपुर निर्माण कराया । यह लेख बहुत गया है । विदित होता है कि गङ्गराज ने उक्त नरेश की अनुमति से कुछ दान भी मन्दिर को दिया था । कोलग का उल्लेख है । 'कोलग' एक माप विशेष था लेख नं० ४८३ ( शक १०४७) में विष्णुवद्धन के वस्तियों के जीर्णोद्धार व ऋषियों को आहारदान के हेतु शल्य ग्राम के दान का उल्लेख है । यह दान नन्दि संघ, द्रमिड़ गए, प्ररुङ्गलान्वय के श्रीपाल त्रैविद्यदेव को दिया गया । लेख में उक्त अन्वय की परम्परा भी है
लेख में
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लेख नं० ४६७
चालुक्य
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