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होय्सलवंश विनयादित्य के केलेयबरसि रानी से एरेयङ्ग पुत्र हुए जो लेख नं० १२४ ( ३२७ ) व १३७ (३४५) में चालुक्यनरेश की दक्षिण बाहु कहे गये हैं। लेख नं १३८ ( ३४६) के कई पद्यों में इस नरेश के प्रताप का वर्णन पाया जाता है। वे वहाँ 'क्षत्रकुलप्रदीप' व 'क्षत्रमौलिमणि' 'साक्षात्समर-कृतान्त' व मालवमण्डलेश्वर पुरी धारा के जलानेवाले, कराल चोलकटक को भगानेवाले, चक्रगोट्ट के हरानेवाले, व कलिङ्ग का विध्वंस करनेवाले कहे गये हैं।
लेख नं० ४६२ (शक.१०१५) विनयादित्य के पुत्र एरेयङ्ग के समय का है। इस लेख में एरेयङ्ग और उनके गुरु गोपनन्दि की कीर्ति के पश्चात् नरेश द्वारा चन्द्रगिरि की बस्तियों के जीर्णोद्धार के हेतु गोपनन्दि को कुछ ग्रामों का दान दिये जाने का उल्लेख है। एरेयङ्ग गङ्गमण्डल पर राज्य करते थे, लेख में इसका भी उल्लेख है। एरेयङ्ग की रानी एचलदेवी से बल्लाल, विष्णुवर्धन और उदयादित्य ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए।
विष्णुवर्धन की उपाधियों व प्रतापादि का वर्णन लेख नं० ५३ (१४३), ५६ ( १३२ ), १२४ (३२७), १३७ (३४५), १३८ ( ३४६), १४४ ( ३८४ ) और ४६३ में पाया जाता है। वे महामण्डलेश्वर, समधिगतपञ्चमहाशब्द, त्रिभुवनमल्ल, द्वारावतीपुरवराधीश्वर, यादवकुलाम्बरद्युमणि, सम्यक्तचूड़ामणि, मलपरोल्गण्ड, तलकाडु-कोङ्ग-नङ्गलि-कोयतूर-उच्छङ्गिनोलम्बवाडि-हानुगल-गोण्ड, भुजबल वीरगङ्ग आदि प्रताप
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