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श्रवणबेलगोल के स्मारक समय एक मुनिवर ने एक कराल व्याघ्र को देखकर कहा 'पोटसल' 'हे सल, इसे मारा' । इस वृत्तान्त पर से राजा ने अपना नाम पोयसल रक्खा और व्याघ्र का चिह्न धारण किया। इसके आगे द्वारावती के नरेश पोय्सल कहलाये और व्याघ्र उनका लाञ्छन पड़ गया। इन्हीं नरेशों में विनयादित्य हुए। अन्य शिलालेखों ( ए० क० ५, अर्सिकेरे १४१, १५७ ) से ज्ञात होता है कि विनयादित्य के पिता नृप काम होयसल थे। अनेक लेखों ( ए० क. ५, मजराबाद ४३; अल्गुद ७६; ए० क० ६, मूडगेरे १६ ) से सिद्ध है कि नृप काम ने भी उसी प्रदेश पर राज्य किया था। लेख नं. ४४ (११८ ) में भी नृप काम का एचि के रक्षक के रूप में उल्लेख है ( पद्य ५) प्रतएव यह कुछ समझ में नहीं आता कि उपर्युक्त व शावली में उनका नाम क्यों नहीं सम्मिलित किया गया। विनयादित्य के विषय में लेख नं० ५४ (६७) में कहा गया है कि उन्होंने शान्तिदेव मुनि की चरणसेवा से राज्यलक्ष्मी प्राप्त की थी ( पद्य नं ० ५१ ), तथा लेख नं० ५३ (१४३) में कहा गया है कि उन्होंने कितने ही तालाब व कितने ही जैनमन्दिर आदि निर्माण कराये थे यहाँ तक कि ईटों के लिए जो भूमि खादी गई वहाँ तालाब बन गये, जिन पर्वतों से पत्थर निकाला गया वे पृथ्वी के समतल हो गये, जिन रास्तों से चूने की गाड़ियाँ निकली वे रास्ते गहरी घाटियाँ हो गये। पोय्सलनरेश जैनमंदिर निर्माण कराने में ऐसे दत्तचित्त थे। ( पद्य नं० ४-५)।
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