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________________ ८४ श्रवणबेलगोल के स्मारक युद्ध करने के समाचार पाये जाते हैं। होयसल नरेश इस समय चालुव यनरेश के माण्डलिक राजा थे। जिस समय ईसा की ११ वीं शताब्दि के प्रारम्भ में चोलनरेशों द्वारा गङ्गवंश का अन्त हो गया उस समय होयसल माण्डलिकों को अपना प्राबल्य बढ़ाने का अवसर मिला। 'काम' के उत्तराधिकारी 'विनयादित्य' ने चोलों से लड़-भिड़कर अपना प्रभुत्व बढ़ाया यहाँ तक कि चालुक्य नरेश सोमेश्वर पाहवमल्ल के महामण्डलेश्वरों में विनयादित्य का नाम गङ्गवाडि ६६००० के साथ लिया जाने लगा। विनयादित्य के उत्तराधिकारी बल्लाल ने अपनी राजधानी शशपुरी से 'बेलूर' में हटा ली। द्वारासमुद्र में भी उनकी राजधानी रहने लगी। इन्होने चङ्गाल्वनरेशों से युद्ध किया था। इनके उत्तराधिकारी विष्णुवर्द्धन के समय में होयसल नरेशों का प्रभाव बहुत ही बढ़ गया। गड़वाडि का पुराना राज्य सब उनके आधीन हो गया और विष्णुवर्द्धन ने कई अन्य प्रदेश भी जीते ! प्रारम्भ में विष्णुवर्द्धन जैन धर्मावलम्बी थे पर पीछे वैष्णव हो गये थे। तथापि जैन धर्म में उनकी सहानुभूति बनी ही रही। विष्णुवर्द्धन ने लगभग सन् ११०६ से ११४१ तक राज्य किया और फिर उनके पुत्र नरसिंह ने सन् ११७३ तक। नरसिंह ने अपने पिता के समान ही होयसल राज्य की वृद्धि की। उनके पुत्र वीर बल्लाल के समय में यह राज्य चालुक्य साम्राज्य के अन्तर्गत नहीं रहा और स्वतंत्र हो गया। वीर बल्लाल ने सन् १२२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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