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श्रवणबेल्गोल के स्मारक है जिसका उल्लेख ए० क० ३, मैसूर ३७ के लेख में पाया जाता है। इस लेख में वे 'समधिगतपञ्चमहाशब्द" महासामन्त कहे गये हैं। जहाँ से यह लेख मिला है उसी वरुण नामक ग्राम में अन्य भी अनेक वीरगल हैं जिनमें गोरिंग के अनुजीवी योद्धाओं के रण में मारे जाने के उल्लेख हैं (मै० प्रा० रि० १६१६ पृ०४६-४७)। लेख नं. ४५ (१२५)
और ५६ (७३) में उल्लेख है कि होय्सलनरेश विष्णुवर्धन के सेनापति गङ्गराज ने चालुक्य सम्राट त्रिभुवनमल्ल पेर्माडिदेव (विक्रमादित्य षष्ठ (१०७६-११२६ ई०) को भारी पराजय दी। इन लेखों में गङ्गराज का कन्नेगाल में चालुक्य सेना पर रात्रि में धावा मारने व उसे हराकर उसकी रसद व वाहन आदि सब स्वाधीन कर अपने स्वामी को देने का जोरदार वर्णन है। नं. १४४ (३८४ ) होयसलवश का लेख है पर उसके आदि में चालुक्याभरण त्रिभुवनमल्ल की राज्यवृद्धि का उल्लेख है जिससे होय्सल राज्य के ऊपर त्रिभुवनमल्ल के आधिपत्य का पता चलता है । लेख नं० ५५ (६६) में मलधारि गुणचन्द्र "मुनीन्द्र बलिपुरे मल्लिकामोद शान्तीशचरणार्चकः' कहे गये हैं ( पद्य नं० २०)। अन्य अनेक लेखों ( ए० क० ७, शिकारपुर २० अ, १२५, १२६, १५३; ए० इ० १२, १४४ ) से ज्ञात हुआ है कि मल्लिकामोद चालुक्यनरेश जयसिंह प्रथम की उपाधि थी। इससे अनुमान किया जा सकता है कि सम्भवतः बलिपुर में शान्तिनाथ की प्रतिष्ठा
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