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चालुक्यवंश
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में राज्य स्थापित किया ।
आठवीं शताब्दी के मध्य
गुजरात भाग में दन्तिदुर्ग नामक एक राष्ट्रकूट राजा ने इस वंश के कीर्त्तिवर्मा द्वितीय को बुरी तरह हराकर राष्ट्रकूटवश की जड़ जमाई । चालुक्यवंश कुछ समय के लिये लुप्त हो गया ।
दशमी शताब्दी के अन्तिम भाग में चालुक्यवश के तैल नामक राजा ने अन्तिम राष्ट्रकूट नरेश कर्क द्वितीय को हराकर चालुक्यवंश को पुनर्जीवित किया । इस समय से चालुक्यों की राजधानी कल्याणी में स्थापित हुई। इसके उत्तराधिकारियों को चोल नरेशों से अनेक युद्ध करना पड़ा । सन् १०७६ से ११२६ तक इस वंश के एक बड़े प्रतापी राजा विक्रमादित्य षष्ठम ने राज्य किया । इन्हीं के समय में बिल्हण कवि ने 'विक्रमाङ्गदेवचरित' काव्य रचा। इनके उत्तराधिकारियों के समय में चालुक्यराज्य के सामन्त नरेश देवगिरि के यादव और द्वारासमुद्र के होय्सल स्वतंत्र हो गये और सन् ११८० में चालुक्य साम्राज्य की इतिश्री हो गई ।
अब इस संग्रह के लेखों में जो इस वंश के उल्लेख हैं उनका परिचय दिया जाता है ।
लेख नं० ३८ (५८ ) ( शक ८६६ ) में गङ्गनरेश मारसिंह के प्रताप वर्णन में कहा गया है कि उन्होंने चालुक्यनरेश राजादित्य को परास्त किया था । नं० ३३७ (१५२) में किसी चगभक्षण चक्रवर्ती उपाधिधारी गोग्गि नाम के एक सामन्त का उल्लेख है । यह संभवत: वही चालुक्य सामन्त
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