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" विषय पर बहुत कुछ प्रकाश डाला है । कौटिलीय अर्थशास्त्र की भूमिका में उसके · सुप्रसिद्ध सम्पादक पं० आर. शामशास्त्री लिखते हैं: -
“अतश्च चाणक्यकालिकं धर्मशास्त्रमधुनातनायाज्ञवल्क्यधर्मशास्त्रादन्यदेवासी - दिति प्रतिभाति । एवमेव ये पुनर्मानव - बार्हस्पत्यौशनसा भिन्नाभिप्रायास्तत्र तत्र कौटिल्येन परामृष्टाः न तेऽअधुनोपलभ्यमानेषु ततद्धर्मशास्त्रेषु दृश्यन्त इति कौटिल्य परामृष्टानि तानि शास्त्राण्यन्यान्येवेति वाढं सुवचम् |
"
अर्थात् इससे मालूम होता है कि चाणक्यके समयका याज्ञवल्क्य धर्मशास्त्र वर्तमान याज्ञवल्क्य शास्त्र ( स्मृति ) से कोई जुदा ही था । इसी तरह कौटिल्यने अपने अर्थशास्त्र में जगह जगह बार्हस्पत्य, औशनस आदिसे जो अपने भिन्न अभिप्राय प्रकट किये हैं वे अभिप्राय इस समय मिलनेवाले उन धर्मशास्त्रों में नहीं दिखलाई देते । अतएव यह अच्छी तरह सिद्ध होता है कि कौटिल्यने जिन शास्त्रों का उल्लेख किया है, वे इनके सिवाय दूसरे ही थे ।
स्वर्गीय बाबू रमेशचन्द्र दत्तने अपने ' प्राचीन सभ्यता के इतिहास' में लिखा है कि प्राचीन धर्मसूत्रों को सुधार कर उत्तरकालमें स्मृतियाँ बनाई गई हैं— जैसे कि मनु और याज्ञवल्क्यकी स्मृतियाँ । जो धर्मसूत्र खोये गये हैं उनमें एक ● मनुका सूत्र भी है जिससे कि पीछेके समय में मनुस्मृति बनाई गई है । *
याज्ञवल्क्य स्मृतिके सुप्रसिद्ध टीकाकार विज्ञानेश्वर लिखते हैं: - " याज्ञवल्क्यशिष्यः कश्चन प्रश्नोत्तररूपं याज्ञवल्क्यप्रणीतं धर्मशास्त्रं संक्षिप्य कथयामास, यथा मनुप्रोक्तं भृगुः ।' अर्थात् याज्ञवल्क्यके किसी शिष्यने याज्ञवल्क्यप्रणीत धर्मशास्त्रको संक्षिप्त करके कहा- जिस तरह कि भृगुने मनुप्रणीत धर्मशास्त्रको संक्षिप्त करके मनुस्मृति लिखी है । इससे मालूम होता है कि उक्त दोनों स्मृतियाँ, मनु और याज्ञवल्क्यके प्राचीन शास्त्रोंके उनके शिष्यों या परम्पराशिष्यों द्वारा निर्मित किये हुए सार हैं और इस बातको तो सभी जानते हैं कि उपलब्ध मनुस्मृति भृगुप्रणीत है— स्वयं मनुप्रणीत नहीं ।
बम्बई गुजरातीप्रेसके मालिकोंने कुल्लूकभट्टकी टीकाके सहित मनुस्मृतिका एक सुन्दर संस्करण प्रकाशित किया है । उसके परिशिष्ट में ३५५ श्लोक
* रमेशबाबूने अपने इतिहास के चौथे भाग में इस समय मिलनेवाली पृथकू पृथक् बीसों स्मृतियों पर अपने विचार प्रकट किये हैं और उसमें बतलाया है कि अधिकांश स्मृतियाँ बहुत पीछेकी बनी हुई हैं और बहुतों में - जो प्राचीन भी -- बहुत पीछे तक नई नई बातें शामिल की जाती रही हैं ।
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