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उठकर उक्त दूसरे स्थान में चली गई थी । इस बातका पता नहीं लगता कि मान्यखेट में राष्ट्रकूटोंकी राजधानी कब तक रही ।
राष्ट्रकूटोंके समय में दक्षिणका चालुक्यवंश ( सोलंकी ) हतप्रभ हो गया था । क्योंकि इस वंशका सार्वभौमत्व राष्ट्रकूटोंने ही छीन लिया था । अतएव जब तक राष्ट्रकूट सार्वभौम रहे तब तक चालुक्य उनके आज्ञाकारी सामन्त या माण्डलिक राजा बनकर ही रहे । जान पड़ता है कि अरिकेसरीका पुत्र बद्दिग ऐसा . ही एक सामन्तराजा था जिसकी गंगाधारा नामक राजधानी में यशस्तिलककी रचना समाप्त हुई है ।
चालुक्योंकी एक शाखा ' जोल' नामक प्रान्त पर राज्य करती थी जिसका एक भाग इस समय धारवाड़ जिले में आता है और श्रीयुक्त आर. नरसिंहाचार्य के मत से चालुक्य अरिकेसरीकी राजधानी ' पुलगेरी' में थी जो कि इस समय 'लक्ष्मेश्वर' के नामसे प्रसिद्ध है ।
इस अरिकेसरीके ही समय में कनड़ी भाषाका सर्वश्रेष्ठ कवि पम्प हो गया है। जिसकी रचना पर मुग्ध होकर अरिकेसरीने धर्मपुर नामका एक ग्राम पारितो षिकमें दिया था । पम्प जैन था । उसके बनाये हुए दो ग्रन्थ ही इस समय . उपलब्ध हैं - एक आदिपुराण चम्पू और दूसरा भारत या विक्रमार्जुनविजय । पिछले ग्रन्थ में उसने अरिकेसरीकी वंशावली इस प्रकार दी हैयुद्धमल्ल - अरिकेसरी - नारसिंह - युद्धमल्ल - बद्दिग - युद्धमल्लनारसिंह और अरिकेसरी । उक्त ग्रन्थ शक संवत् ८६३ ( वि० ९९८ में ) • समाप्त हुआ है, अर्थात् वह यशस्तिलकसे कोई १८ वर्ष पहले बन चुका था । इसकी रचना के समय अरिकेसरी राज्य करता था, तब उसके १८ वर्ष बाद -- यशस्तिलककी रचना के समय -- उसका पुत्र राज्य करता होगा, यह सर्वथा ठीक जँचता है ।
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काव्यमाला द्वारा प्रकाशित यशस्तिलक में अरिकेसरीके पुत्रका नाम 'श्रीमद्वाराज' मुद्रित हुआ है; परन्तु हमारी समझमें वह अशुद्ध है । उसकी जगह ' श्रीमद्वद्दिगराज' पाठ होना चाहिए। दानवीर सेठ माणिकचन्दजीके सरस्वतीभंडारकी वि० सं० १४६४ की लिखी हुई प्रतिमें' श्रीमद्वयगराजस्य' पाठः है और इससे हमें अपने कल्पना किये हुए पाठकी शुद्धतामें और भी अधिक विश्वास होता है । ऊपर जो हमने पम्पकवि-लिखित अरिकेसरीकी वंशावली दी है, उस पर पाठकों को जरा बारीकी से विचार करना चाहिए। उसमें युद्धमल
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