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थे । अमोघवर्षके पुत्र अकालवर्ष (द्वितीय कृष्ण ) और अकालवर्षके जगत्तुंग हुए *। इन जगत्तुंगके दो पुत्रों-इन्द्र या नित्यवर्ष और बद्दिग या अमोघवर्ष (तृतीय)मेंसे-अमोघवर्ष तृतीयके पुत्र कृष्णराजदेव या तृतीय कृष्ण थे। इनके समयके शक संवतू ८६७, ८७३, ८७८, और ८८१ के चार शिलालेख मिले हैं, इससे इनका राज्यकाल कमसे कम ८६७ से ८८१ तक सुनिश्चित है। ये दक्षिणके सार्वभौमराजा थे और बड़े प्रतापी थे । इनके अधीन अनेक माण्डलिक या करद राज्य थे। कृष्णराजने-जैसा कि सोमदेवसूरिने लिखा है-सिंहल, चोल, पाण्डय और चेर राजाओंको युद्ध में पराजित किया था। इनके समयमें कनड़ी भाषाका सुप्रसिद्ध कवि पोन्न हुआ है जो जैन था और जिसने शान्तिपुराण नामक श्रेष्ठ ग्रन्थकी रचना की है। महाराज कृष्णराज देवके दरबारसे इसे 'उभयभाषाकविचक्रवर्ती' की उपाधि मिली थी। __निजामके राज्यमें मलखेड़ नामका एक ग्राम है जिसका प्राचीन नाम 'मान्यखेट' है । यह मान्यखेट ही अमोघवर्ष आदि राष्ट्रकूट राजाओंकी राजधानी थीx और उस समय बहुत ही संमृद्ध थी। संभव है कि सोमदेवने इसीको मेलपाटी या मेल्याटी लिखा हो। 'हिस्टरी आफ कनारी लिटरेचर' के लेखकने लिखा है कि पोन कविको उभयभाषाकविचक्रवर्तीकी उपधि देनेवाले राष्ट्रकूट राजा कृष्णराजने मान्यखेटमें सन् ९३९ से९६८ तक राज्य किया है । इससे भी मालूम होता है कि मान्यखेटका ही नाम मेलपाटी होगा; परन्तु यदि यह मेलपाटी काई दूसरा स्थान है तो समझना होगा कि कृष्णराज देवके समयमें मान्यखेटसे राजधानी
* जगत्तुंग गद्दीपर नहीं बैठे। अकालवर्षके बाद जगत्तुंगके पुत्र तृतीय इन्द्रको गद्दी मिली। इन्द्र के दो पुत्र थे-अमोघवर्ष (द्वितीय) और गोविन्द (चतुर्थ ) । इनमेंसे द्वितीय अमोघवर्ष पहले सिंहासनारूढ हुए; परंतु कुछ ही समय के बाद गोविन्द चतुर्थने उन्हें गद्दीसे उतार दिया आर आप राजा बन बैठे। गोविन्दके बाद उनके काका अर्थात् जगत्तुंगके दूसरे पुत्र अमोघवर्ष (तृतीय) गद्दीपर बैठे। अमोघवर्ष के बाद ही कृष्णराज देव सिंहासनासीन हुए। इन सबके विषयमें विस्तारसे जानने के लिए डा०भाण्डारकरकृत 'हिस्ट्री आफ डेक्कन' या उसका मराठी अनुवाद पढ़िए । ___x महाराजा अमोधवर्ष (प्रथम) के पहले राष्ट्रकूटोंकी राजधानी मयूरखण्डी थी जो इस समय नासिक जिलेमें मोरखण्ड किले के नामसे प्रसिद्ध है।
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