SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जहाँ तक हम जानते हैं जैनविद्वानों और आचार्योंमें-दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनोंमें-एक सोमदेवने ही 'राजनीतिशास्त्र' पर कलम उठाई है। अत. एव जैनसाहित्यमें उनका नीतीवाक्यामृत अद्वितीय है । कमसे कम अब तक तो इस विषयका कोई दूसरा जैनग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ है। ग्रन्थ-रचना। इस समय सोमदेवसूरिके केवल दो ही ग्रन्थ उपलब्ध हैं-नीतिवाक्यामृत और यशस्तिलकचम्पू । इनके सिवाय-जैसा कि नीतिवाक्यामृतकी प्रशस्तिसे मालूम होता है-तीन ग्रन्थ और भी हैं-१ युक्तिचिन्तामणि,२त्रिवर्गमहेन्द्रमातलिसंजल्प और ३ षण्णवतिप्रकरण । परन्तु अभीतक ये कहीं प्राप्त नहीं हुए हैं । उक्त ग्रन्थोंमेंसे युक्तिचिन्तामणि तो अपने नामसे ही तर्कग्रन्थ मालूम होता है और दूसरा शायद नीतिविषयक होगा। महेन्द्र और उसके सारथी मातलिके संवादरूपमें उसमें त्रिवर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ और कामकी चर्चा की गई होगी। तीसरेके नामसे सिवाय इसके कि उसमें ९६ प्रकरण या अध्याय हैं, विषयका कुछ भी अनुमान नहीं हो सकता है। इन सब ग्रन्थोंमें नीतिवाक्यामृत ही सबसे पिछला ग्रन्थ है। यशोधरमहाराजचरित या यशस्तिलक इसके पहलेका है । क्योंकि नीतिवाक्यामृतमें उसका उल्लेख है। बहुत संभव है कि नीतिवाक्यामृतके बाद भी उन्होंने ग्रन्थरचना की हो और उक्त तीन ग्रन्थों के समान वे भी किसी जगह दीमक या चूहोंके खाद्य बन रहे हों,या सर्वथा नष्ट ही हो चुके हों। विशाल अध्ययन । यशस्तिलक और नीतिवाक्यामृतके पढ़नेसे मालूम होता है कि सोमदेवसूरिका अध्ययन बहुत ही विशाल था। ऐसा जान पड़ता है कि उनके समयमें जितना (पूर्वोक्त पद्यमें चारायण, तिमि, धिषण और चरक इन चार आचार्योंके मतोंका उल्लेख किया गया है।) २--कोकवद्दिवाकामः निशि भुञ्जीत । चकोरवन्नक्तंकामः दिवापक्वम् ।-नी० वा० पृ. २५७ । अन्ये त्विदमाहुः-- यः कोकवहिवाकामः स नक्तं भोक्तुमर्हति । स भोक्ता वासरे यश्च रात्रौ रन्ता चकोरवत् ॥ ३३०॥ -यशस्तिलक आ० ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003150
Book TitleNiti Vakyamrutam Satikam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorPannalal Soni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Ethics, G000, & G999
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy