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न च वचनविलासे पूज्यपादोऽसि तत्त्वं
वदसि कथमिदानीं सोमदेवेन सार्धम् ॥ अर्थात् हे वादी, न तो तू समस्तदर्शन शास्त्रों पर तर्क करनेके लिए अकलंकदेवके तुल्य है, न जैनसिद्धान्तके कहनेके लिए हंससिद्धान्तदेव है और न व्याकरणमें पूज्यपाद है, फिर इस समय सोमदेवके साथ किस बिरते पर बात करने चला है ?
इस उक्तिसे स्पष्ट है कि सोमदेवसूरि तर्क और जैनसिद्धान्तके समान व्याकरणशास्त्रके भी पण्डित थे।
राजनीतिज्ञ सोमदेव । सोमदेवके राजनीतिज्ञ होनेका प्रमाण यह नीतिवाक्यामृत तो है ही, इसके सिवाय उनके यशस्तिलकमें भी यशोधर महाराजका चरित्रचित्रण करते समय राजनीतिकी बहुत ही विशद और विस्तृत चर्चा की गई है। पाठकोंको चाहिए कि वे इसके लिए यशस्तिलकका तृतीय आश्वास अवश्य पढ़ें।
यह आश्वास राजनीतिके तत्त्वोंसे भरा हुआ है। इस विषयमें वह अद्वितीय है । वर्णन करनेकी शैली बड़ी ही सुन्दर है । कवित्वकी कमनीयता और सरसतासे राजनीतिकी नीरसता मालूम नहीं कहाँ चली गई है। नीतिवाक्यामृतके अनेक अंशोंका अभिप्राय उसमें किसी न किसी रूपमें अन्तर्निहित जान पड़ता है +। ___ * अकलंकदेव-अष्टसहस्त्री, राजवार्तिक आदि ग्रन्थोंके रचियता । हंससिद्धान्तदेव-ये कोई सैद्धान्तिक आचार्य जान पड़ते हैं। इनका अब तक
और कहीं कोई उल्लेख देखनेमें नहीं आया। पूज्यपाद-देवनन्दि, जैनेन्द्रव्याकरणके कर्ता।
+ नीतिवाक्यामृत और यशस्तिलकके कुछ समानार्थक वचनोंका मिलान कीजिए:१-बुभुक्षाकालो भोजनकाल:- नी० वा० पृ० २५३ ।
चारायणो निशि तिमिः पुनरस्तकाले, मध्ये दिनस्य धिषणश्चरकः प्रभाते। भुक्तिं जगाद नृपते मम चैष सर्गस्तस्याः स एव समयः क्षुधितो यदैव ॥ ३२८॥
-यशस्तिलक आ० ३।
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