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________________ साधना का मार्ग ६३ सताना है। एक कुम्हार घड़े को पका रहा है। क्या हम कहें कि वह घड़े को सता रहा है ? यह सताने की प्रक्रिया नहीं, यह पकाने की प्रक्रिया है। कायक्लेश शरीर के सताने की प्रक्रिया नहीं है, वह शरीर को तपाने की प्रक्रिया है। जिसका शरीर सधा हुआ नहीं होता वह कठिनाई को नहीं झेल सकता । वज्रासन सुखकर भले न हो, हितकर अवश्य है । जिसने घुटनों को नहीं साधा वह वज्रासन की मुद्रा में नहीं बैठ सकता। उसके घुटने टूटने लग जाते हैं। जो सर्दी में अधिक वस्त्रों से लदा रहता है, उसमें सर्दी के प्रतिरोध की क्षमता विकसित नहीं हो सकती। गर्मी को सहने के लिए भी शरीर को साधना होता है। शून्य में रहना, अकेले में रहना बहुत बड़ी समस्या है। अन्तरिक्ष यात्री को इन समस्याओं का सामना करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। किसी व्यक्ति को अकस्मात् अन्तरिक्ष यात्रा में नहीं भेजा जाता। उसी व्यक्ति को वहां भेजा जाता है जो प्रशिक्षण प्राप्त कर चुका होता है । कायक्लेश साधना के प्रशिक्षण का दूसरा पाठ है। पहला पाठ है-उपवास का प्रशिक्षण। भगवान् महावीर ने आहार के विषय में चार निर्देश दिए थे-१. उपवास, २. अल्प-आहार, ३. आहार-विषयक विविध संकल्प, ४. दूध-दही आदि का परित्याग। जैन धर्म में उपवास की अनिवार्यता नहीं है। व्यक्ति की शक्ति और आंतरिक क्षगताओं के जागरण की उपयोगिता—इन दोनों के सामंजस्य पर उपवास का निर्देश है। तब तक उपवास करो जब तक मन स्वस्थ और प्रसन्न रहे। मन की पवित्रता न रहे तब उपवास की पवित्रता भी नहीं रहती। भोजन न करने का शरीर पर प्रभाव होता है, पर उससे आंतरिक क्षमताओं के विकास में पूर्ण सहयोग मिलता है। यह शरीर और मन को सताने की प्रक्रिया नहीं है। ___ कायक्लेश के विषय में भगवान् ने तीन निर्देश दिए—आसन, आतापना और शरीर-संस्कार का परित्याग। हमारे शरीर में अनेक शक्ति केन्द्र हैं । उन्हें जागृत करने के लिए आसनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । हमारी ग्रन्थियों का नियमित स्राव मानसिक विकास के लिए आवश्यक है। आसन उस कार्य में हमारा सहयोग करते हैं। सर्वांगासन कंठमणी (Thyride Glands) के स्राव को नियमित रखता है। आधा घंटा सर्वांग आसन करने से शरीर को कष्ट होता है किन्तु यह कष्ट के लिए कष्ट नहीं है। यहां कष्ट का अर्थ सुख और हित है । जिस आचरण से शरीर को कष्ट हो, सुख और हित न हो वह शरीर का संताप हो सकता है । मत्स्यासन, वज्रासन, वीरासन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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