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________________ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में आदि-आदि आसनों का क्षमता के विकास में समुचित स्थान है। इसलिए उनकी उपयोगिता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। . आतापना भी बहुत मूल्यवान् है। सूर्य का आतप शारीरिक शक्ति का ही जीवन-मन्त्र नहीं है, चैतन्य के प्रकाश का भी रहस्यपूर्ण मन्त्र है। इससे तैजस बढ़ता है और प्रकाशावरण क्षीण होता है। आंखें खोलकर सूर्य का आतप लेना, सूर्य पर त्राटक करना बहुत लाभदायक है तो बहुत खतरनाक भी। पहले चरण में सूर्य की ओर पीठ कर उसका आतप लिया जाता है या लेटकर । दूसरे चरण में खड़े होकर, सूर्य के सामने मुंह कर उसका आतप लिया जाता है। कुछ साधक प्रातःकाल में आतप लेते हैं और कुछ मध्याह्न में। भगवान् महावीर के युग में सैकड़ों-सैकड़ों मुनि इस आतापना का प्रयोग करते थे। २. कायोत्सर्ग कबीर को अनुभव हुआ कि जब मैं था तब गुरु नहीं था, अब गुरु हैं तो मैं नहीं रहा। कारण बहुत साफ है कि प्रेम की गति अति संकरी है। इतनी संकरी कि उसमें दो नहीं समा सकते । उसमें एक ही रह सकता है, या मैं या गुरु । शरीर और आत्मा--दोनों का अनुभव एक साथ नहीं हो सकता। या शरीर का एक अनुभव होता है या आत्मा का। हम शरीर में रहते हुए आत्मा के अनुभव में जाते हैं तब शरीर विसर्जित हो जाता है, कायोत्सर्ग हो जाता है। आत्मा का अनुभव होना और शरीर के अनुभव का समाप्त हो जाना कायोत्सर्ग है । 'मैं शरीर हूं'-यह अनुभूति जाने-अनजाने सुदीर्घकाल से चल रही है। जिस क्षण शरीर की मूर्छा टूट जाती है, 'मैं शरीर नहीं हूं'- यह चेतना जागृत हो जाती है, तब कायोत्सर्ग सम्पन्न होता है । जब मौत होती है तब काया छूट जाती है, किन्तु उसका ममत्व नहीं टूटता । 'मैं शरीर हूं'—यह भावना नहीं टूटती किन्तु उसकी पकड़ और मजबूत होना चाहती है। मरते समय आदमी के मन में एक विचित्र प्रकार का मोह जागता है। वह मरने से घबराता है। उसे मरने का डर लगता है। डर इस बात का है कि मेरा शरीर छूट जाएगा। जिस घर में रहता था, वह मेरे हाथ से छूट जाएगा। मौत से हमारा कुछ बिगड़ता नहीं है। आपने एक अच्छा घर बनाया। वह घर पुराना हो गया, टूट-फूट गया। आपको कोई नये में रहने का निमंत्रण दे, क्या आप उसे पसन्द नहीं करेंगे? क्या पुराने घर को छोड़ नये घर में नहीं चले जाएंगे? आप अवश्य ही उसमें जाना चाहेंगे। फिर मौत से घबराने की क्या बात है ? हमारा शरीर, जो वर्षों से काम करते-करते पुराना हो जाता है, यदि वह हमसे छूटता है और नया घर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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