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सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में
मुगलों से मराठों की लड़ाई चल रही थी। मराठे ‘गुरिल्ला' युद्ध लड़ रहे थे। वे मुगलों पर हमला करते और फिर अपने ठिकानों पर लौट आते । इस लड़ाई में उन्हें काफी कठिनाइयां झेलनी पड़ीं। भोजन, वस्त्र आदि की समस्या उनके सामने बनी रहती। सर्दी का मौसम था। मराठा सैनिकों के पास पूरे कपड़े नहीं थे। एक सैनिक के कपड़े फट गए। चारों ओर चिंदियां लटक रही थीं। उसके मन में जरा उदासी आ गई। वह अपनी अधीरता लिए हुए छत्रपति शिवाजी के पास पहुंचा। उसने कहा-'महाराज ! भयंकर सर्दी पड़ रही है। शरीर कांप रहा है। सर्दी से बचने का कोई साधन नहीं है। सर्दी को मैं सहन भी कर लूंगा पर शरीर को भी पूरा नहीं ढक पा रहा हूं। लज्जा भी नहीं बच रही है ।' शिवाजी ने देखा, वीर सैनिक अधीर हो रहा है । उसका मन कायर हो गया है । शिवाजी बोले—'बहादुर सैनिकं ! तुम जानते हो तुम्हारे शरीर पर घाव हैं? ये घाव क्या कहते हैं ?' सैनिक अहंकार के साथ बोला-'मेरे पराक्रम की गाथा गाते हैं।' 'तो वीर सैनिक ! यदि तुम पूरे कपड़े पहन लोगे तो ये घाव ढंक जाएंगे। वे कपड़े तुम्हारी वीरता को ढंकने वाले होंगे।' सैनिक आश्वस्त होकर चला गया।
सुख-सुविधा की मनोवृत्ति वीरता के घावों को ढंकने वाली होती है । जब हमारे मन में सुख पाने का भाव पैदा होता है तब पराक्रम का भाव दब जाता है। शरीरदर्शी आदमी सुख की बात सोचता है और आत्मदर्शी हित की बात सोचता है। सख छोटा सत्य है और हित बड़ा सत्य है। आदमी को पांच-दस घंटा बैठे रहने में सुख मिल सकता है, किन्तु वह हित नहीं है। उससे मधुमेह की बीमारी की सम्भावना बढ़ जाती है । महर्षि चरक ने 'सुखासिका' को मधुमेह का कारण बतलाया है। सुख की सीमा है। शरीर को सुख-सुविधा की भी अपेक्षा है। किन्तु उसका अतिरेक होना अच्छी बात नहीं है। वह शरीर के लिए घातक बन जाता है। इस सत्य की छाया में हम कायक्लेश का हार्द समझ सकते हैं। मनुष्य में विषय की भावना प्रबल न हो, सुख की आसक्ति तीव्र न हो, कर्त्तव्य-विमुखता का भाव जागृत न हो—इन दृष्टियों को सामने रखकर भगवान् महावीर ने कायक्लेश का विधान किया। यह तप का विधान नहीं है। आटे में पानी मिलाया, वह गीला हो गया। उसकी रोटी बना ली, फिर वह गीली नहीं होती। आग में तपी हुई रोटी गीली नहीं होती । तप से तपा हआ शरीर गीला नहीं होता।
कच्चे घड़े में पानी नहीं डाला जा सकता। वह आग की आंच में पक जाता है तब उसमें जल-धारण की शक्ति पैदा हो जाती है। क्या घड़े को पकाना उसे
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