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आत्मा और परमात्मा
बादलों से ढंका हुआ सूर्य प्रकट होने लग जाता है और एक दिन वह पूरा का पूरा प्रकट हो जाता है। यह है परमात्मा की स्थिति। ___जैसे-जैसे हम परमात्मा की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे शक्ति के अवरोध समाप्त होते चले जाते हैं। वे ऊबड़-खाबड़ भूमि में होते हैं । समतल में कोई अवरोध नहीं होता । समता के चरमबिन्दु पर पहुंचते ही सारे गढ़े भर जाते हैं और शक्ति के सारे स्रोत प्रवाहित हो जाते हैं । यह है परमात्मा की स्थिति ।
जैसे-जैसे हम परमात्मा की ओर बढ़ते हैं वैसे-वैसे आनंद का सागर लहरा उठता है। आवेश और एषणा के समाप्त होते ही विकृति के तूफान शांत हो जाते हैं। आनन्द के सिन्धु की ऊर्मियां आत्मा के चरण पखारने लग जाती हैं। यह है परमात्मा की स्थिति।
शिष्य ने पूछा-'गुरुदेव ! मैं परमात्मा कैसे बन सकता हूं?'
गुरु ने उत्तर दिया- 'तुम परमात्मा बनना चाहते हो तो उसका ध्यान करो। उसे देखते रहो । परमात्मा का ध्यान नहीं करने वाला कभी परमात्मा नहीं बन सकता। परमात्मा वही बन सकता है जो परमात्मा को देखता है, उसका मनन करता है, उसका चिन्तन करता है और उसमें तन्मय रहता है।
परमात्मा के प्रति होने वाली तन्मयता आत्मा में छिपे हुए परमात्मा के बीज को अंकुरित करती है और वे अंकुर बढ़ते-बढ़ते स्वयं परमात्मा बन जाते हैं।
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