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________________ साधना का मार्ग १. शरीर को सताना धर्म नहीं अमरीकी उद्योगपति हेनरी फोर्ड जब युवक था, तब एक दिन ट्रेन से न्यूयार्क जा रहा था। त्यौहार का दिन था। 'होटल भरे हुए मिलेंगे। कहां ठहरूंगा?' वह इसी उधेड़-बुन में था। इतने में ही टिकट-चेकर आ पहुंचा। उसने पूछा-'टिकट है ?' युवक ने कोई उत्तर नहीं दिया। दूसरी बार फिर पूछा और फिर उत्तर नहीं दिया। तीसरी बार फिर पूछा और फिर उत्तर नहीं मिला। चेकर गरम हो गया। उसने उत्तेजनापूर्ण शब्द कहे । युवक ने भी कुछ तीखी बातें कहीं। दोनों में झड़प हो गई। चेकर ने पुलिस को बुला लिया। पुलिस उसे थाने में ले गई । युवक रातभर थाने में रहा। प्रातःकाल उसे न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया गया। न्यायाधीश ने देखा युवक की शालीन आकृति को, उसकी वेशभूषा को और व्यवहार को । उसे ऐसा नहीं लगा कि इसने टिकट न ली हो । न्यायाधीश ने आश्चर्य की मुद्रा में कहा—'तुम अच्छे युवक हो । मैं कारण नहीं समझ पाया कि तुमने टिकट क्यों नहीं लिया?' युवक ने अपनी जेब में हाथ डाला और फस्ट क्लास का टिकट न्यायाधीश के सामने रख दिया। न्यायाधीश ने कहा—'भद्रपुरुष ! तुम्हारे पास टिकट था, फिर तुम थाने में क्यों गए?' युवक ने कहा-'मेरे पास बहत कीमती सामान था। उसकी सुरक्षा के लिए उपयुक्त स्थान की खोज कर रहा था। फिर भला थाने से अधिक सुरक्षित स्थान कौन-सा मिलता? मैं रातभर वहां रहा । मजे से नींद ली। मेरा सामान सुरक्षित रहा और सन्तरी बन्दक लिये पहरा देता रहा।' थाने में जाने के दो अर्थ हो सकते हैं-कोई आदमी अपराध कर थाने में जाता है और कोई आदमी माल की सुरक्षा के लिए भी थाने में चला जाता है। युवक ने कोई अपराध नहीं किया था। उसके पास टिकट मौजूद था। किन्तु उसे अपने कीमती सामान की सुरक्षा करनी थी। उसे उस समय इससे अच्छा स्थान कोई नहीं मिल रहा था। वह वहां चला गया। शरीर एक कारागृह है। कुछ लोग उसमें बन्दी बने बैठे हैं और कुछ लोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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