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________________ आत्मा और परमात्मा चित्रकार कभी राजा से मिला ही नहीं । राजा ने उसके कार्य की जानकारी लेने के लिए अपने विश्वस्त कर्मचारी को भेजा । वह चित्रकार के घर गया । वह घर में नहीं मिला । खोजते खोजते वह जंगल में गया । उसने देखा, वहां एक बाड़ा है। उसमें पचासों मुर्गे हैं बूढ़ा चित्रकार मुर्गों के बीच में बैठा है। राजा के कर्मचारी ने पूछा - 'क्या चित्र बन गया ?' बूढ़ा बोला- 'चित्र बना रहा हूं ।' 'कब तक बनेगा ?' ५७ 'अभी ढाई वर्ष लगेंगे ।' ढाई वर्ष बीत गए । राजा ने फिर जांच करवाई चित्रकार को बुलाकर कहा'चित्र लाओ ।' 'चित्र अभी बना नहीं है ।' 'तीन वर्ष बीत गए, फिर चित्र क्यों नहीं बना ? अब तक क्या किया ?' 'क्या किया, यह बताऊं ? ' 'मैं अवश्य जानना चाहूंगा।' राजसभा में चारों ओर मुर्गे की आवाज होने लगी । इधर-उधर मुर्गा दौड़ने लगा । सभासदों ने देखा, यह कैसा आदमी ? यह तो मुर्गा है । वही भाषा, वही व्यवहार और वही आचरण । राजा ने कहा- 'यह क्या करते हो ?' 'महाराज ! तीन वर्षों में मैंने क्या किया, वह बता रहा हूं। मैं मुर्गा हो गया हूं ।' 'मुझे तुम्हें मुर्गा नहीं बनाना है, मुझे मुर्गे का चित्र चाहिए ।' 'मुर्गे बने बिना मुर्गे का चित्र नहीं बना सकता।' 'तो तुम मुर्गा बन गए? अब चित्र लाओ ।' 'चित्र में क्या कठिनाई है। आधा घंटे का काम है। तूलिका लाओ, रंग कागज लाओ, अभी चित्र तैयार कर देता हूं।' सारी सामग्री लाई गई, और देखते-देखते चित्र तैयार हो गया । पूछा- 'क्या यह जीवन्त चित्र है ? ' राजा ने 'महाराज ! हां।' 'इसकी कसौटी क्या है ? वे जीवन्त नहीं थे और यह जीवन्त क्यों है ?' चित्रकार ने एक मुर्गा मंगाया। पहले के चित्रों को रखा और उनके सामने मुर्गे को छोड़ा। मुर्गा चित्रों के सामने गया और मुंह फेरकर लौट आया। सबके बाद अपना चित्र रखा । उसे देखते ही मुर्गा सक्रिय हो गया। लड़ने की मुद्रा में आ गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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