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सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में
गई। चेतना की रश्मियों को मूल चेतना के साथ जोड़ने का प्रस्थान शुरू हो गया। आत्मा और परमात्मा के बीच का एक सेतु निर्मित्त हो गया। इस पार आत्मा और उस पार परमात्मा। दोनों के बीच का सेतु हो गया अन्तरआत्मा। ___'जो मनुष्य परमात्मा होना चाहता है उसे परमात्मा को जानना-देखना होता है। जो अर्हत् को जानता है वह अपनी आत्मा को जानता है । जो अर्हत् को नहीं जानता वह अपनी आत्मा को भी नहीं जानता।' आचार्य कुन्दकुन्द का साधना-सूत्र परमात्मा होने का मूल्यवान् सूत्र है । साधारणतया कहा जाता है कि पहले आत्मा को जानो, फिर परमात्मा को जानो। वास्तविकता यह है कि पहले परमात्मा को जानो, फिर आत्मा को जानो। परमात्मा को जाने बिना आत्मा को नहीं जाना जा सकता।
एक पुरानी कहानी है। राजा ने चित्रकारों को आमन्त्रित किया। देश भर के चित्रकार एकत्रित हुए। राजा ने कहा-'राजमुद्रा बनानी है । उसमें बांग देते हुए मुर्गे का चित्र होगा। ऐसा जीवन्त चित्र बनाओ जिससे मुद्रा की श्रेष्ठता सिद्ध हो सके। सर्वश्रेष्ठ चित्र पुरस्कृत किया जाएगा।' चित्रकार बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा की सब शर्तों को स्वीकार कर लिया। कुछ दिन बाद वे चित्र बनाकर लाए और राजा के सामने प्रस्तुत किए। राजा ने देखा और प्रसन्न हुआ। उसे चित्र बहुत अच्छे लगे। उसने सोचा- 'मैं कोई कलाकार तो हूं नहीं। किस चित्र को प्राथमिकता दी जाए, इसका निर्णय कौन करे?' राजा ने सोच-विचारकर एक बूढ़े चित्रकार को बुलाया किसी समय वह राज्य का सर्वश्रेष्ठ चित्रकार था। किन्तु अब बूढ़ा हो चला था। राजा ने कहा-'इन चित्रों में कौन प्रथम है, इसका निर्णय करो।' चित्रकार सारे चित्रों को ले गया। दूसरे दिन आकर बोला—'महाराज मुद्रा में देने लायक एक भी चित्र नहीं है। सब बेकार हैं।' 'यह कैसे कहते हो? चित्र बहुत सुन्दर हैं'-राजा ने आश्चर्य की मुद्रा में कहा। चित्रकार बोला-'सन्दर तो हैं। किन्तु आपने कहा था जीवन्त चित्र होना चाहिए। इनमें जीवन्त चित्र एक भी नहीं है।' राजा कठिनाई में पड़ गया। ‘राज्य के सारे मूर्धन्य कलाकार आ गए। उनका एक भी चित्र पसन्द नहीं आया तो फिर तुम बनाओ !' राजा ने कहा। चित्रकार बोला-'मैं बूढ़ा हो गया हूं, कैसे बनाऊं? फिर भी यदि आप चाहते हैं तो मैं चित्र बनाऊंगा, पर मुझे तीन वर्ष चाहिए।' 'तीन वर्ष का समय !' राजा ने विस्मय के साथ पूछा। चित्रकार ने कहा—'श्रेष्ठता साधना के बिना प्राप्त नहीं होती। तात्कालिकता काम-चलाऊ हो सकती है, किन्तु वह श्रेष्ठता का सजन नहीं कर सकती।'
चित्रकार तीन वर्ष की अवधि लेकर वहां से चला गया। छह मास बीत गए।
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