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सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में
होती है तो उस समय ग्रहण किये जाने वाले कर्म-पुद्गल अनुभव दशा में उसके चरित्र को विकृत बनाते हैं । उसकी परिणति यदि दूसरे को कष्ट देने की होती है तो उस समय ग्रहण किये जाने वाले कर्म-पुद्गल अनुभव दशा में उसके सुख में बाधा डालते हैं । यह परिणति का सिद्धान्त है । हम किस रूप में परिणत होते हैं, किस प्रकार की क्रियात्मक शक्ति के द्वारा पुद्गल - धारा को स्वीकार करते हैं, इसका ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है । इसके आधार पर ही वह जीवन की सफलता का निर्धारण कर सकता है, जीवन-संघर्ष में आने वाली बाधाओं को पार कर सकता है ।
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जिस व्यक्ति को यह लगे कि मुझे ज्ञानावरण अधिक सता रहा है, उसे ज्ञानावरण को क्षीण करने की साधना का मार्ग चुनना चाहिए। किसी को मोह अधिक सताता है, किसी की क्षमताओं का अवरोध पैदा होता है-ये भिन्न-भिन्न समस्याएं हैं । साधना के द्वारा इसका समाधान पाया जा सकता है। क्रोध पर चोट करनी हो तो दूसरे प्रकार की साधना करनी होगी। और यदि मन पर चोट करनी हो तो दूसरे प्रकार की साधना करनी होगी। जिस समस्या से जूझना है, उसी के मूल पर प्रहार करने वाली साधना चुननी होगी। यह बहुत सूक्ष्म पद्धति हैं। रहस्य हमारी समझ में आ जाए तो जीवन की समस्याओं को सुलझाने में हम बहुत सफल हो सकते हैं ।
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