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कर्मवाद
कर्मवाद की पृष्ठभूमि
कुछ प्राणी संवेदन करते हैं, जानते नहीं । कुछ प्राणी जानते हैं, संवेदन नहीं करते । कुछ प्राणी जानते भी हैं और संवेदन भी करते हैं। अचेतन न जानता है और न संवेदन करता है। ये चार विकल्प हैं 1
पहले विकल्प में संवेदन है, ज्ञान नहीं । यह चेतना का निम्न स्तर है । यह वृत्ति का स्तर हैं । इसके आधार पर जीवन जीया जा सकता है, पर चैतन्य का विकास नहीं किया जा सकता ।
दूसरा विकल्प शुद्ध ज्ञान का है। इसमें संवेदन नहीं है, कोरा ज्ञान है। संवेदन का माध्यम शरीर है। मुक्त आत्मा में शरीर नहीं होता। जिसके शरीर नहीं होता, वह प्रिय और अप्रिय - दोनों का स्पर्श नहीं करते ।
तीसरे विकल्प में ज्ञान और संवेदन- दोनों हैं । यह मानसिक और बौद्धिक विकास का स्तर है । इस स्तर में चैतन्य के विकास की पर्याप्त सम्भावना होती है । जैसे-जैसे हमारा ज्ञान विकसित होता चला जाता है, वैसे-वैसे हम संवेदन के धरातल से उठकर ज्ञान की भूमिका को विकसित करते चले जाते हैं। जैसे-जैसे हमारी ज्ञान की भूमिका विकसित होती है, वैसे-वैसे हम आत्मा के अस्तित्व में प्रवेश पाते हैं । हम अपने अस्तित्व में तब तक प्रवेश नहीं पाते, जब तक संवेदन का धरातल नीचे नहीं रह जाता । आचार्य अमितगति के शब्दों में अज्ञानी संवेदन के धरातल पर जीता है और ज्ञानी ज्ञान के धरातल पर । मनुष्य दो धरातल पर जीते हैं । ज्ञानी मनुष्य जानते हैं किन्तु संवेदन नहीं करते। जो घटना घटित होती है, उसे जानते-देखते हैं किन्तु उसका संवेदन नहीं करते, भार नहीं ढोते । अज्ञानी मनुष्य जानते नहीं, संवेदन करते हैं । वे स्थिति का भार ढोते हैं । वेदांत का साधना- सूत्र है कि साधक द्रष्टा होकर जीये । वह घटना के प्रति साक्षी रहे, उसे देखे, किन्तु उससे प्रभावित न हो, उसमें लिप्त न हो ।
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ज्ञान होना और संवेदन न होना- -यह द्रष्टा का जीवन है । मेरे हाथ में कपड़ा
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